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________________ (T) आचार्य दण्डी के अनुसार जहाँ किसी एक वस्तु का वर्णन कर तत्वदृश धर्म वाली अन्य वस्तु का वर्णन किया जाए वहाँ प्रतिवस्तूपमा अलकार होता है। 2 आचार्य उद्भट के अनुसार जब उपमेय एव उपमान के प्रसग मे साधारण धर्म का बार-बार उपादान किया जाए तो वहाँ प्रतिवस्तुपमा अलकार होता है। 3 :: 179 :: आचार्य मम्मट के अनुसार जहाँ एक ही सामान्य धर्म की दो वाक्यों मे स्थिति बताई जाए वहाँ प्रतिवस्तूपमा अलकार होता है । किन्तु दोनों ही वाक्यों में साधारण धर्म के प्रतिपादक शब्द भिन्न-भिन्न होते है, क्योंकि समान पद रखने से पुनरुक्त दोष हो जाता है अत उस दोष से बचने के लिए दोनों ही वाक्यों में एक ही समान धर्म के वाचक दो भिन्न-भिन्न पदों का उल्लेख किया जाता 14 1 प्रतिवस्तूपमा में कवि की दृष्टि दो भिन्न शब्दों द्वारा उपन्यस्त साधारण दृष्टान्त मे कवि का ध्यान धर्म एवं धर्मी आचार्य अजितसेन के अनुसार जहाँ दो वाक्यों में समता हो और उनके अर्थ की समता से उपमान, उपमेय भाव की प्रतीति हो वहाँ प्रतिवस्तूपमा अलकार होता है इन्होंने अन्वय और व्यतिरेक रूप से दो भेदों का उल्लेख भी किया है इनके द्वारा निरूपित परिभाषा मे निम्नलिखित चार तत्वों का आधान हुआ है 2 धर्म पर होती है, जबकि दोनों पर टिका रहता है । [ दो वाक्यों या वाक्यार्थों का होना (2) दोनों वाक्यों या वाक्यार्थों में एक का उपमेय और दूसरे का उपमान होना, (3) दोनों वाक्यों या वाक्यार्थों मे एक साधारण धर्म का होना और 40 उस साधारण धर्म का भिन्न-भिन्न शब्दों द्वारा कथन किया जाना 15 3 4 5 समानवस्तुन्यासेन प्रतिवस्तूपमोच्यते । यथेवानभिधानेऽपि गुणसाम्य प्रतीति । साधुसाधारणत्वादि गुणोऽ प्रव्यतिरिच्यते । स साम्यमापादयति विरोधेऽपि तयोर्यथा 11 काव्यादर्श - 2 /46 भा० काव्या0, 2/34 वही - 2 / 35 काव्या० सा०स० 1/22-23 प्रतिवस्तूपमा तु सा । सामान्यस्य द्विरेकस्य यत्र वाक्यद्वयस्थिति ।। वाक्ययोर्यत्र सामान्यनिर्देश पृथगुक्तयो । प्रतिवस्तूपमा गम्यौपम्या द्वेधान्वयान्यत ।। पृथमुक्तवाक्यद्वये यत्र वस्तुभावेन सामान्य निर्दिश्यते तदर्थसाम्येन गम्यौपम्या प्रतिवस्तूपमा । अन्वयव्यतिरेकाभ्यां सा द्विधा । का0प्र0, 10/101 एव वृत्ति
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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