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________________ समः इस अलकार का निरूपण आचार्य मम्मट से आरम्भ होता है । यद्यपि इसके निरूपण का श्रेय आचार्य रुद्रट कृत 'साम्य' अलकार मे निहित है । जहाँ अर्थ क्रिया के द्वारा उपमान की उपमेय मे समता दिखाई जाए वहाँ सम अलकार होता है । आचार्य मम्मट ने यथायोग्य सम्बन्ध को सम अलकार कहा है 12 आचार्य अजितसेन कृत परिभाषा भी मम्मट के निकट है । इसमे परस्पर समान रूप वाले पदार्थो का सम्बन्ध वर्णित किया जाता है । परवर्ती आचार्य विद्यानाथ विश्वनाथ, जयदेव आदि की परिभाषा मम्मट के ही समान है ।4 03 गम्यौपम्यमूलक अलंकार - तुल्ययोगिताः यह प्राचीनतम अलकार है किन्तु प्राचीन और अर्वाचीन आचार्यो की परिभाषाओं मे पर्याप्त अन्तर परिलक्षित होता है, जो परिभाषा भामह, दण्डी आदि आचार्यों ने लिखी उससे भिन्न परिभाषा मम्मट आदि अर्वाचीन आचार्यों ने की है। आचार्य भामह के अनुसार जहाँ न्यून पदार्थ का विशिष्ट पदार्थ के साथ गुण साम्य की विवक्षा से तुल्य कार्य एव क्रिया के योग का प्रतिपादन किया - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - का0प्र0, 10/125 रू0 काव्या - 8/105 समंयोग्यतया योगोयदि सम्भावित क्वचित् । यत्रान्योन्यानुरूपाणामर्थानां घटना समम् । सुभद्रा भरतेशस्य लक्ष्म्या सममभूद्वरा ।। का सा समालकृतिर्योग वस्तुनोरनुरूपयो ।। ख सम स्यादानुरूप्येण श्लाघा योगस्य वस्तुन ।। ग सममौचित्यतोऽनेक वस्तुसम्बन्धवर्णनम् ।। अचि0, 4/215 प्रताप०, पृ0 - 515 सा0द0, 10/71 चन्द्रा०, 5/81
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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