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________________ परवर्ती आचार्य विद्यानाथ विश्वनाथ अप्पय दीक्षित तथा पण्डितराज की परिभाषाएँ अजितसेन से प्रभावित है ।' विचित्र - इस अलकार की उदभावना का श्रेय आचार्य रुय्यक को है । आश्चर्य की प्रतीति होने के कारण ही इस अलंकार को विचित्र की अभिधा प्रदान की गयी आचार्य रुय्यक के अनुसार जहाँ इष्टफल की प्राप्ति के लिए उसके विरूद्ध प्रयत्न किया जाए वहाँ विचित्र अलकार होता है 12 2 आचार्य अजितसेन के अनुसार जहाँ अपने अनभिमत फल-प्राप्ति के लिए विस्तृत रूप से उद्योग किया जाए वहाँ विचित्र अलकार होता है । इन्होंने प्रयत्न के स्थान पर उद्योग पद का उल्लेख किया है शेष अश रुय्यक के समान है। आचार्य शोभाकर मित्र, जयदेव, विद्याधर, विद्यानाथ, विश्वानाथ अप्पय दीक्षित तथा पण्डितराज ने इस अलकार का उल्लेख किया है । इनकी परिभाषाएँ भी अजितसेन से अभिन्न है।4 प्रताप0, पृ0-5।। का कार्यकारणयोर्भिन्नदेशत्वे सत्यसगति । खि सा0द0, - 10/68 ग कुवलयानन्द, 85-86 घ) र0ग0, पृ0 - 590-93 अ0स0, पृ0 - 168 स्वविरुद्धफलाप्त्यर्थमुद्योगो यत्र तन्यते । विचित्रालकृति प्राहुस्तां विचित्रविदो यथा ।। एक विफल प्रयत्नोविचित्रम् । अ0र0, 62 ख चन्द्रा0, - 5/82 गि एकावली - 2/39 घा प्रताप0 - पृ0 5।। ड) सा0द0 - 10/71 च कुवलयानन्द - 94 छ र0ग0, पृ0 - 608 अ०चि0, 4/208
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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