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________________ आचार्य अजितसेन की परिभाषा दण्डी से प्रभावित हैं । विभावना का अर्थ है विशिष्ट भावना या कल्पना । विभावना मे कारण के अभाव का अर्थ वास्तव मे कारण का न होना नहीं किन्तु तात्पर्य कारणान्तर से कारण तो होता है परलोक प्रसिद्ध या सामान्य कारण का अभाव बताकर अप्रसिद्ध कवि कल्पित कारणान्तर का प्रतिपादन किया जाता है ।। विशेषोक्तिः - - :: 170 :: यह अलकार विभावना के विपरीत है इसमे समग्र कारणों के रहने पर भी कार्य की अनुतपत्ति का प्रतिपादन किया जाता है । आचार्य भामह के अनुसार जहाँ एक गुण की हानि होने पर उसकी पूर्ति गुणान्तर से की जाए, वहाँ विशेषोक्ति अलकार होता है 12 आचार्य दण्डी ने वर्णनीय वस्तु की अतिशयता सिद्ध करने के लिए अपेक्षित गुण, जाति, क्रिया आदि के वैकल्य या न्यूनता के कथन मे विशेषोक्ति को स्वीकार किया है । 3 आचार्य वामन ने विशेषोक्ति को रूपक से अनुप्राणित स्वीकार किया है । 4 आचार्य भोज तथा अग्निपुराणकार ने दण्डी के ही लक्षण को उद्धृत कर दिया 15 आचार्य उद्भट की परिभाषा ही परिवर्ती आचार्यों मे मान्य हुई । उद्भट ने विशेषोक्ति के सन्दर्भ मे यह बताया कि कार्योत्पत्ति के समग्र कारण के विद्यमान रहने पर भी यदि कार्य (फल) की अनुत्पत्ति का प्रतिपादन किया जाए तो वहाँ विशेषोक्ति अलकार होता है 16 आचार्य अजितसेन के अनुसार भी कार्योत्पत्ति के समग्र साधनों के रहने पर भी यदि कार्य की अनुत्पत्ति का वर्णन किया जाए तो वहाँ विशेषोक्ति अलंका T 2 3 4 5 6 प्रसिद्धकारणाभावे कार्योत्पत्तिर्विभावना । अ०चि०, 4 / 204 भा० - काव्या०, 3/23 का0द0, 2/323 काव्या० सू०, 4/3/23 (क) स०क०भ०, 4/70, 71 (ख) अ०पु०, 8 / 26, काव्यशास्त्रीय भाग पृ० काव्या०सा०स०, 5/4 - 75
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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