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________________ होने पर अधिक अलकार होता है । इसके अतिरिक्त इन्होंने एक अन्य 'अधिक' अलकार को स्वीकार किया है । रुद्रट ने विशाल आधार मे भी, किसी कारण से, छोटी वस्तु के समाविष्ट होने का उल्लेख किया है । यहाँ बड़े आधार से भी छोटे आधेय का अधिक महत्त्व प्रदर्शित किया गया है तथा छोटे आधेय की महत्ता प्रदर्शित करने मे कतिपय कारणों का भी निर्देश है । परवर्ती आचार्यों ने आधाराधेय न्यूनाधिकता के वर्णन मे हेतु का निर्देश नहीं किया है । परवती आचार्यों ने भी रुद्रट के द्वितीय अधिक के आधार पर अधिक अलकार का निरूपण किया है 12 आचार्य मम्मट आधार एवं आधेय मे से एक दूसरे के छोटे होने पर भी उसमे क्रमश बडा सिद्ध करने में अधिक अलकार को स्वीकार किया है 13 रुय्यक एव पण्डितराज ने भी इस मत को स्वीकार किया है। 4 आचार्य अजितसेन के अनुसार यदि आधार और आधेय की विचित्रता के कारण आधार तथा आधेय मे अनुरूपता न होतोवहाँ अधिक अलकार होता है । आधार के अल्प तथा बहुत्व के कारण इसके दो भेद हो जाते है 15 इस अलकार मे जिस प्रकार आधेय की अधिकता का वर्णन किया जाता है उसी प्रकार आधार का भी आधिक्य वर्णित होता है । वर्ण्य की महनीयता पर सर्वदा बल दिया जाता है और कभी-कभी उसे आधार रूप मे भी वर्णित किया जाता है । वैसे वह प्राय आश्रित के रूप मे ही रहता है । एक के आधिक्य का वर्णन दूसरे की अधिकता की भी अभिव्यक्ति करता है । आचार्य विद्यानाथ की परिभाषा अजितसेन से प्रभावित है 16 1 2 3 4 5 :: 168 :: ७ 6. रू०, काव्या0, 9/26 वही, 9/28 (क) अधिक बोध्यमाधारादाधेयाधिकवर्णनम् ।। (ख) अधिक पृथुलाधारादाधेयाधिक्यवर्णनम् ।। का0प्र0, 10/128 (क) अ०स०, पृ0 - 169 (ख) र०ग०, पृ० - 610 अ०चि०, 4 / 201 एव वृत्ति । प्रताप0, पृ0 508 - चन्द्रा0, 5/83 कुव0, 95
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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