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________________ :: 164 :: तद्गुण - आचार्य रुद्रट के अनुसार जहाँ नाना गुण वाले पदार्थों में भेद लक्षित न हो वहाँ तद्गुण अलकार होता है । रुद्रट के इस तद्गुण को मम्मट के सामान्य से भिन्न नही कहा जा सकता । इसके अतिरिक्त रुद्रट ने एक अन्य तद्गुण का भी उल्लेख किया है जहाँ यह बताया है कि असमान गुण वाली वस्तु जब अधिक गुणवाली वस्तु के सानिध्य में रहकर उसके गुण को धारण कर ले तो वहाँ तद्गुण अलकार होता है ।2 आचार्य मम्मट ने रुद्रट कृत परिभाषा को किचित् अन्तर से स्वीकार किया । इनके अनुसार जहाँ कोई वस्तु अत्युज्ज्वल गुण वाली वस्तु के समीप रहकर अपने गुप को त्याग कर उत्कृष्ट गुप वाली वस्तु के गुप को ग्रहण कर ले, तो वहाँ तद्गुण अलकार होता है । आचार्य अजितसेन के अनुसार अतिशय साम्य होने से जहाँ कोई वस्तु उत्कृष्ट गुण वाली वस्तु के गुण को ग्रहण कर ले वहाँ तद्गुण अलकार होता परवर्ती आचार्यों की परिभाषाएँ अजित के समान हैं । अचि0, 4/182 50 काव्या0, 9/22 रु० काव्या0, 6/24 का0प्र0, 10/137 विहायस्वगुण न्यून संनिधिस्थितवस्तुन । यत्रोत्कृष्टगुपादान तद्गुपालकृतियथा । (क) एकावली, 8/65 ख) प्रताप0, पृ0 - 498 ग सा0द0, 10/90 (कुव0, 141 (ड) र0म0, पृ0 - 692
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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