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________________ आचार्य रूय्यक तथा विद्यानाथ कृत परिभाषा तथा भेद अजितसेन के समान है ।। किन्तु दोनों ही आचार्यो ने मम्मट द्वारा निरूपित कार्यकारण के पौर्वापर्य स्वीकृत भेद को भी स्वीकार किया है जिसके विषय मे अजितसेन विपर्य रूप मम्मट मौन है 12 सहोक्ति आचार्य भामह के अनुसार जहाँ दो वस्तुओं से सम्बद्ध दो क्रियाओं का एक ही पद से कथन हो वहाँ सहोक्ति अलकार होता है । इसमे सहार्थ वाचक शब्दों का प्रयोग होना आवश्यक है 13 आचार्य दण्डी गुण तथा कर्म क्रिया) के सहभाव अलकार को स्वीकार किया है। 1 उद्भट कृत परिभाषा भामह वामन कृत परिभाषा पर भी भामह का स्पष्ट प्रभाव है 16 अग्निपुराण के अनुसार जहाँ तुल्यधर्मियों के सहभाव का कथन हो वहाँ सहोक्ति अलकार होता है । इन्होंने दण्डी द्वारा निरूपित 'गुण कर्मणाम्' के स्थान पर 'तुल्यधर्मिणाम्' पद का उल्लेख किया है । 7 आचार्य रुद्रट ने वास्तव तथा औपम्य दोनों ही वर्गों में इसका निरूपण किया है । वास्तव गत सहोक्ति मे दो पदार्थों के एक साथ कथन मे सहोक्ति अलकार को स्वीकार किया है ।8 और औपम्य वर्ग मे केवल सादृश्य पक्ष पर विचार किया गया है । 1 2 3 4 5 6 7 ∞0 8 (क) अ०स०, सूत्र (ख) प्रताप०, पृ० (क) कार्यकारणपौर्वापर्यविध्वसश्च । (ख) कार्यकारणयो पौर्वापर्यविपर्ययरूपातिशयोक्तिर्यथा । - 23 एव वृत्ति 477 - कथन मे सहोक्ति अनुकृत है 15 काव्यालकार 3/39 सहोक्ति सहभावेन कथन गुणकर्मणाम् । काव्या० सा० स०, 5 / 15 वस्तुद्वयक्रिययोस्तुल्यकालयोरेकपदाभिधानं सहोक्ति । सहोक्ति सहभावेनकथन तुल्यधर्मिणाम् ।। रु काव्या०, 7/13 अ०स० सू० 23, की वृत्ति प्रताप0, पृ0 481 काव्यादर्श - 2 / 351 काव्य०सू०, 4/3/28 अ०पु०, 8 / 23 पृ0 - 345
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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