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________________ :: 128 :: प्रतीयमान रसभावादि मूलक - रसवत्, प्रेय, ऊर्जस्वि, समाहित, भावोदय, भावसन्धि और भावराबलता । अस्फुट प्रतीयमान मूलक - उपमा, विनोक्ति, अर्थान्तरन्यास, विरोध, विभावना, उक्तगुण निमिक्ता विशेषोक्ति, विषम, सम, विचित्र, अधिक, अन्योन्य, कारणमाला, काव्यलिग, अनुमान, सार, यथासख्य, अर्थापत्ति, पर्याय, परिवृत्ति, परिसख्या, विकल्प, समुच्चय, समाधि, प्रत्यनीक, प्रतीप, विशेष, मीलन, सामान्य, तद्गुण, अतद्गुण, असगति, व्याजोक्ति, वक्रोक्ति, स्वभावोक्ति, भाविक और उदात्त - ये अस्फुट प्रतीयमान मूलक अलकार है । विद्यानाथ कृत उक्त वर्गीकरण अजितसेन से प्रभावित है । आचार्य अजितसेन अलकारों के वर्गीकरण के अनन्तर अलकारों मे होने वाले पारस्परिक अन्तर को भी स्पष्ट किया है जिनका विवेचन इस प्रकार परिणाम और रूपक मे भेद - आचार्य अजितसेन के अनुसार - परिणाम और रूपक इन दोनों में आरोप किया जाता है । परिणाम में आरोग्य विषय का प्रकृत मे उपयोग होता है, पर रूपक मे उसका उपयोग नही होता. यही भेद है। उल्लेख और रूपक में भेद: उल्लेख और रूपकालकारों में आरोप प्रत्यक्ष का आरोप्य स्वाभाव के राम्भव और असम्भव के कारण दोनों में भेद है । अभिप्राय यह है कि दोनों आरोपमूलक अभेद प्रधान सादृश्य गर्भ अर्थालंकार है । निरगमाला रूपक मे अनेक उपमानों का एक उपमेय में आरोप मात्र रहता है, उल्लेख में एक वस्तु का परिस्थिति भेद से अनेकधा वर्णन किया जाता है ।2 - - - - - - - - - ---------- परिणामरूपकयोरारोपगत्वेऽप्यारोप्यस्य प्रकृतोपयोगानुपयोगाभ्या भेद । अचि0 पृ0 - ।।4 उल्लेखरूपकयोरारोपगोचरस्यारोप्यस्वभावसभवासभवाभ्यां वलक्षण्यम । अचि0 पृ0 - 114 N
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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