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________________ ( 57 ) रसी रसवद् ), ( 58 ) ऊर्जस्वी, 1620 सूक्ष्म, 1630 उदात्त, ( 59 ) प्रत्यनीक, 1600 व्याघात, 06 10 पर्याय, 640 परिवृत्ति, 1 650 कारणमाला, 1660 एकावली, 670 द्विकावली, 168 0 माला, ( 690 दीपक, (700 सार, 0710 ससृष्टि, 720 सकर । उभयालकार ससृष्टि के अन्तर्गत माना गया है । आचार्य अजितसेन के अनुसार अर्थालंकारों को प्रथमत चार भागों मे विभाजित किया गया है । 010 (20 (30 (40 0.0 (2) (3) I प्रतीयमान शृगार स्फुट प्रतीयमान अभाव मूलक प्रतीयमान वस्तु मूलक प्रतीयमान औपम्य मूलक इस प्रकार अर्थाकृति चार प्रकार की होती है ।। अलकारों मे प्रतीयमान की व्यवस्था प्रतीयमान श्रृंगार रस भाव द्विमूलक अलंकार:- प्रेयस् रसवद् ऊर्जस्वी, समाहित और भाविक अलकारों मे रस और भाव आदि की प्रतीति होती है । - रस भावमूलक अस्फुट प्रतीयमान मूलक अलकारः - उपमा, विनोक्ति, विरोध, अर्थान्तरन्यास, विभावना, उक्तिनिमित्त विशेषोक्ति, विषम, सम, चित्र, अधिक, अन्योन्यकारणमाला, एकावली, दीपक, व्याघात, माला, काव्यलिंग, अनुमान, यथासंख्य, अर्थापत्ति, सार, पर्याय, परिवृत्ति, समुच्चय, परिसंख्या, विकल्प, समाधि, प्रत्यनीक, विशेष, मीलन्, सामान्य, सगति, तद्गुण, अतद्गुण, व्याजोक्ति, प्रतिपदोक्ति, स्वभावोक्ति, भाविक और उदात्त अलंकारों मे विद्वानों के चित्त को आनन्दित करने वाली वस्तु स्पष्टतया प्रतीयमान नहीं होती । प्रतीयमान वस्तु मूलक अलंकार आक्षेप, परिकर, पर्यायोक्त, - व्याजस्तुति, उपमेयोपमा, समासोक्ति, अतिशयोक्ति, अप्रस्तुत, प्रशंसा अनन्वय, प्रतीयमानश्रृंगाररसभावादिका मता । स्फुटा प्रतीयमानाऽन्या वस्त्वौपम्यतदादिके । अ०चि० 4 / 1
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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