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________________ .. .. .. आचार्य आनन्दवर्धन ने भी उसकी उपादेयता स्वीकार की है ।' काव्यप्रकाशकार ने भी अतिशयोक्ति को अलंकारों का प्राण स्वीकार किया है - सर्वत्र एवविधविषयेऽतिशयोक्तिरेव प्राणत्वेनावतिष्ठतेता विना प्रायेणालकारत्वायोगात् । का0प्र0 पृ0 - 743 यह अतिशयोक्ति नामक अलकार नहीं अपितु अलकारत्व का बीजभूत तत्व है । अलंकारों का मूल तत्व उपमाः आचार्य अप्पय दीक्षित ने उपमा को सब अलकारों का एकमात्र मूल हेतु माना है । उनके अनुसार अकेली उपमारूपिणी नर्तक्की ही विभिन्न अलंकारों की भूमिका को प्राप्त करके काव्य रूपी रगमञ्च पर नृत्य करती हुई सहृदयों के मनो को आनन्दित करती है ।2 राजशेखर ने उपमा को अलकारों मे शिरोमणि काव्य सम्पत्ति का सर्वस्व तथा कविवंश की माता कहा है । अलंकारों का मूल तत्व वास्तव, औपम्य, अतिशय और श्लेष: आचार्य रुद्रट ने अलकारों में केवल एक तत्व को मूल नहीं माना। उनके अनुसार अलकारों को चार वर्गों में विभक्त किया जा सकता है तथा प्रत्येक वर्ग का आधार भिन्न है । कुछ अलकारों का मूल आधार वास्तविकता है, कुछ ------ - प्रथमं तावदतिशयोक्ति गर्भता सर्वालकारेषु शक्यक्रिया । कृतैव च सा महाकविभ कामपि काव्यच्छायां पुष्पतीति कथं पतिशययोगिता स्वविषयौचित्येन क्रियमाणा सती काव्ये नोत्कर्षमावहेत् । ध्वन्या० पृ0 - 259 उपमेका शैलूषी सम्प्राप्ता चित्रभूमिकाभेदान् । रञ्जयति काव्यरगे नृत्यन्ती तद्विदां चेत ।। चित्रमीमांसा पृ० - 40
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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