SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 2 3 4 5 6 00 7 8 9 10 11 प्रथम और तृतीयपाद मे समानता होने से सदश यमक होता है । प्रथम और चतुर्थपा = मे समानता होने से आवृत्ति यमक होता है । द्वितीय और तृतीयपाद मे समानता होने से गर्भ यमक होता है । द्वितीय और चतुर्थपाद मे समानता होने से सदष्टक यमक होता है। तृतीय और चतुर्थपाद में समानता होने से पुच्छ यमक होता है । चारो चरणों के एक समान होने से पक्ति यमक होता है । प्रथम और चतुर्थ तथा द्वितीय और तृतीयपाद एक समान हों तो परिवृत्ति यमक होता है । प्रथम और चतुर्थ तथा द्वितीय और तृतीयपाद एक समान हों तो युग्मक यमक होता है । श्लोक का पूर्वार्द्ध और उत्तरार्द्ध एक समान होने से समुद्गक यमक होता है । एक ही श्लोक के दो बार पढे जाने पर महायमक होता है । आचार्य अजितसेन कृत परिभाषा पर आचार्य भामह पुराण का प्रभाव है । दण्डी तथा अग्नि प्रस्तुत अध्याय के सर्वेक्षण से ज्ञात होता है कि आचार्य अजित सेन ने शब्दालकारों के निरूपण मे भी अपनी मौलिक प्रतिभा का परिचय दिया है। वक्रोक्ति अलकार के निरूपण मे वक्राभिप्राय से अर्थान्तर के कथन मे वक्रोक्ति अलकार व काकु का उल्लेख नहीं किया जिसका परिज्ञान उदाहरण के अवलोकन से ही ज्ञात हुआ कि इन्हे श्लेष तथा काकु दोनों में यह अलकार अभीष्ट है । यमक अलकार का निरूपण अत्यन्त सुस्पष्ट एवं वैज्ञानिक रीति से किया । श्लोक, पाद, पद, वर्ण की आवृत्ति मे यमक अलंकार स्वीकार करते हुए दण्डी आदि पूर्व आचार्यों द्वारा अनुमोदित आदि मध्य तथा अन्त विषयक यमक को भी स्वीकार किया है और यमक मे वाच्चार्थ की भिन्नता का भी उल्लेख किया है इसके अतिरिक्त यमक तथा अनुप्रास के अन्तर को भी सुस्पष्ट किया है जिसका उल्लेख पूर्ववर्ती किसी भी आचार्य ने नहीं किया ।
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy