SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 122
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्तुत स्थल पर ग्रन्थ गौरव के भय से उन भेदों का उल्लेख नहीं किया जा रहा है और भेदों मे कोई चमत्कार भी निहित नहीं रहता है । भेद तो तत्तद् अलकारों की स्थिति के ही सूचक होते है । आचार्य भामह ने अर्थों मे परस्पर भिन्न वर्षों की आवृत्ति को यमक कहा है। तथा यमक के केवल पाँच भेदों का उल्लेख किया है आदि यमक, मध्यान्त यमक, पादाभ्यास, एव समुद्ग आदि किया है 12 । इन्होंने पराभिमत संदष्टक पाँचों भेदों मे अन्तर्भावित आचार्य रुद्रट ने भिन्नार्थक क्रमिक तुल्यश्रुति मे मे यमक अलकार को स्वीकार किया है । उनके अनुसार यमक का विषय केवल छन्द अर्थात् पद्य है। गद्यात्मक प्रबन्ध मे प्राय इसका प्रयोग भी नहीं मिलता । इनकी परिभाषा पर भामह का स्पष्ट प्रभाव परिलक्षित होता है किन्तु केवल छन्द मे यमक की स्थिति बताकर इन्होंने एक नया विचार व्यक्त किया है 13 इन्होने यमक । से वर्णन भी किया है 4 का विस्तार आचार्य भोज कृत परिभाषा दण्डी कृत परिभाषा पर आधारित है । आचार्य मम्मट कृत परिभाषा भामह से प्रभावित होते हुए भी किञ्चिद् नवीन है। इनके अनुसार सार्थक तथा भिन्नार्थक वर्षों की पुन श्रुति मे यमक अलकार होता है । इनकी परिभाषा में निम्नलिखित तत्त्व निहित है - 6 (10 (2) 1 2 3 4 5 आवली तथा समस्त पाद यमक यमक के यमक के अन्य अन्य भेदों को पूर्वोक्त 19 6 पदों के सार्थक होने पर भिन्नार्थकता का होना । एक पद सार्थक तथा दूसरा निरर्थक होना । तुल्यश्रुतीना भिन्नानामभिधेयै परस्परम् । वर्णाना य पुनर्वादो यमक तन्निगद्यते ।। काव्याकार भामह, 2/9-10 रुद्रट काव्यालकार 3/1 रुद्रट काव्यालकार 3 / 1-22 स०क०भ० - 2/56 से 67 पूर्वाद्ध तक । का0प्र0, सूत्र 117 भा० काव्यालकार 2/96
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy