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________________ इस प्रकार उक्त उद्धरण से स्पष्ट हो जाता है कि अमात्य प्रवर वाग्भट ने विक्रम संवत् 1213 0 1157 ई0 | मे जैन विहार का जीर्णोद्धार किया और एक ध्वजस्तम्भ की स्थापना की । इससे यह सिद्ध होता है कि 1157 ई० मे विद्यमान थे । वाग्भट उक्त उद्धरण से यह सुनिश्चित हो जाता है कि आचार्य अजित सेन आचार्य वाग्भट के पश्चात् बारहवीं शताब्दी मे रहे होंगे । इसके अतिरिक्त आचार्य विद्यानाथ के 'प्रतापरुद्रयशोभूषण' मे निरूपित उपमा तथा रूपक अलकार पर अजित सेन का सर्वाधिक प्रभाव परिलक्षित हो रहा है । आचार्य अजित सेन द्वारा निरूपित उपमा इस प्रकार है 'वर्णस्य साम्यमन्येन स्वत सिद्धेन धर्मत । भिन्नेन सूर्यभीष्टेन वाच्य यत्रोपमैकदा ।।' स्वतो भिन्नेन स्वत सिद्धेन विद्वत्समतेन अप्रकृतेन सह प्रकृतस्य यत्र धर्मत सादृश्य सोपमा 1 स्वत अप्रसिद्धस्याप्युत्प्रेक्षायामनुमानत्वघटनात्।। स्वतो भिन्नेनेत्यनेनानन्वयनिरास 1 वस्तुन एकस्यैवानन्वये उपमानोपमेयत्वघटनात् । सिद्धेनेत्यनेनोत्प्रेक्षानिरास सूर्यभीष्टेनेत्यनेन हीनोपमादिनिरास । 11 विद्यानाथ द्वारा निरूपित उपमा इस प्रकार है स्वत सिद्धेन भिन्नेनसमतेन च धर्मत । साम्यमन्येन वर्ण्यस्य वाच्य चेदेकदोपमा ।। अ०चि0 4 / 18 तथावृत्ति
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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