SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 117
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कानुप्रा आचार्य उद्भट ने केवल आठ अलकारों को स्वीकार करने वाले आलकारिकों का नाम निर्देश किये बिना ही उनके द्वारा स्वीकृत आठ अलकारों मे अन्यतम छेकानुप्रा की भी चर्चा की है ।' आचार्य उभट के अनुसार जहाँ दो-दो वर्णो का सुन्दर एव सदृश उच्चारण किया जाए वहाँ छेकानुप्रास होता है । इनके अनुसार जहाँ दो-दो समुदायों मे ही परस्पर उच्चारणगत साम्य हो वहाँ छेकानुप्रास होगा, तीनतीन समुदायों मे इन्हे छेकानुप्रास अभीष्ट नहीं है | 2 काव्यालकारसार संग्रह के टीकाकार प्रतीहारेन्दुराज के अनुसार 'छेक' का अर्थ नीड मे रहने वाले पक्षी बताए गए है जिस प्रकार से उनके उच्चारण मे माधुर्य होता है ठीक वैसे ही जिस अनुप्रास मे माधुर्य का समावेश हो वहाँ छेकानुप्रास होता है । इसके अतिरिक्त इन्होंने छेक का अर्थ 'विदग्ध' भी किया है जिससे विदित होता है कि जो अलकार विद्वज्जन को प्रिय हो वह छेकानुप्रास है । 3 आचार्य मम्मट के अनुसार जहाँ अनेक व्यञ्जन का एक बार सादृश्य हो वहाँ छेकानुप्रास होता है । 4 काव्य प्रकाश के टीकाकार सार बोधिनीकार के अनुसार वर्णों का व्यवधान होने पर भी अनेक पर छेकानुप्रास होता है 15 व्यञ्जनों का सदृश साम्य होने आचार्य अजित सेन छेकानुप्रास का उदाहरण देने के पश्चात् अन्याचार्याभिमत छेकानुप्रास का लक्षण प्रस्तुत किया है । उदाहरण - 1 2 3 4 5 रमणी रमणीयाऽसौ मरुदेवी मरुन्मता । नाभिराज महानाभिममुमुददनेकेश ।। अलकारसारसग्रह प्रथम वर्ग, पृo काव्यालकार सारसग्रह - - पृष्ठ 254 लघुवृत्ति - Yo - 254 सोऽनेकस्य सकृत्पूर्व । - 248 छेकानुप्रासस्तुद्वयोर्द्वयो बा०बो० अ०चि0 3/7 सुशोक्ति कृती, का0पु09/106 सारबोधिनीकारस्तु व्यवहितस्यापि अनेकस्य व्यञ्जनस्य सकृत्साम्ये छेकानुप्रास मन्यमाना । - go - 496
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy