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________________ आकर्षण और स्त्री-पुरुष सम्बन्ध ६१ ऊपरके उदाहरणमें पत्नीको साग्रह दूसरे पुरुषसे संबंध स्थापित कर लेनेकी सलाह देनेवाला पति और इसी प्रकार पतिको सानुरोध दूसरा विवाह करनेके लिए कहनेवाली पत्नी,-दोनोंकी भावना अवैपयिक हैं और सास्कृतिक भी हैं । आप उन दोनों के सामने पहुँचकर पूछे कि क्या तुम्हारी भावना सास्कृतिक है और नैतिक है, तो बेचारे दोनों ही शायद घबरा जायँगे और बेहद लजित हो रहेंगे। लेकिन ऐसी अवस्थामें उनकी आत्म-लजा ही सांस्कृतिक सदाशयताका लक्षण होगी । संस्कृति कहीं यहाँ वहाँ नहीं रहती । जहाँ उत्सर्ग है, संस्कृति वहाँसे आदर्श प्राप्त करती है। प्रश्न-इन्द्रियातीत और सांस्कृतिक आनंदसे तो मेरा मतलब केवल इतना ही था कि यदि दैवात् किसी वहुत ही परिष्कृत अभिरुचि (rlineal taste. ) की कवियित्री स्त्रीका किसी देहाती जड़ मछुएसे संबंध हो जाय, और बादमें दोनोंको यह संयोग कुछ अनमेल जंचे, तो क्या दोनोंकी रजामंदी होनेपर वे अलग अलग नहीं हो सकते ? और खुशीसे अलग अलग होकर अपने अनुरूप शादी कर लेनेमें तब क्या हानि होगी ? उत्तर -दैवात् संबंध हो जाय, इसका क्या अर्थ ? देव सीधा अपने हाथोसे तो शादी नहीं करता । या तो शादी उन दोनों ने स्वयं कर ली या माँ-बापने की। माँ-बाप ऐसी शादी नहीं करेंगे। यदि उन दोनोंने आपसमें संबंध कर लिया जिसे वे दोनों पीछे जाकर पाते हैं कि बेमेल है, तो स्पष्ट है कि किसी बाह्य मोहके कारण उन्होंने वैसी शादी की होगी। मोह सैकड़ों प्रकारका होता है । एक शब्द अग्रेजीमें है 'रोमास, दूसरा शब्द है 'एडवेंचर' । कुछ ऐसी बहकमें ऊपरके प्रकारकी शादी हो गई हो तो अचरज नहीं । पर मोह तो अंतमें टिकता नहीं । आज नहीं कल, वह तो टूटेगा ही । वह मोह जब फूटे तो विवाहसंस्थाकी किस्मत भी फूट गई, ऐसा समझने का कोई कारण नहीं है । आपका प्रश्न है कि कहार और कवयित्री शादी तो करते कर बैठे, लेकिन अब मिलकर रहा नहीं जाता तो वैसी अवस्थामें क्या किया जाय ? इसपर मेरे जैसा व्यक्ति, अगर वह कवियित्री मुझे अपने पास आने दें, तो उनसे कहेगा (क्योंकि कवियित्री होनेसे वह बारीक बातोंको अधिक समझनेके योग्य होंगी) कि 'सुनों कवियित्री, यह तुम्हारा पति बिल्कुल अयोग्य है न ? लेकिन तुम तो योग्य हो । उसको थोड़ी
SR No.010836
Book TitlePrastut Prashna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1939
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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