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________________ प्रस्तुत प्रश्न प्रश्न-यदि कोई पुरुष या स्त्री किसी अन्य स्त्री या पुरुषसे आकर्षित होकर उस ओर आसक्ति-भाव रखने लगे, तो क्या इस प्रकार उनके पारस्परिक दांपत्य प्रेम में अन्तर पड़नेकी संभावना नहीं है ? ऐसे समय क्या कर्त्तव्य है ? उत्तर--कर्त्तव्य सदा - ही है कि जहाँ तक बस चले, ऐसा अपनेसे कुछ भी न होने देना चाहिए जो सामाजिक सदाचारके विरुद्ध हो । जो विवाहिता है उसीमें भोग्य-बुद्धि रखने की इजाजत समाजकी ओरसे पुरुषको है । वही स्त्रीको । अन्यत्र वैसी बुद्धि न रखना कर्त्तव्य हो जाता है। प्रश्न शायद यह है कि कर्तव्य निबाहा कैसे जाय ? विकार तो हमारे वशमें नहीं है। इससे अन्यत्र भी आकर्षण हो आता है और बहुत तीव्र हो जाता है । 'कर्तव्य' 'कर्त्तव्य' की रट लगानेसे वह आकर्षण मिटता हुआ बिल्कुल नहीं दीखता। तब क्या हो ? देखते तो हैं कि ऐसी अवस्थामें कुछका कुछ होने लगता है । हत्याएँ होती हैं, अपघात होते हैं। उन्माद होता है, हिस्टरिया होता है और स्वभावमें तरह-तरहकी गाँठे पड़ जाती हैं। ऐसा नुस्खा क्या बताया जाय जो सबको सब काल एक-सा उपयोगी हो जाय ? फिर भी, जो इस द्वन्द्वसे त्रस्त है, उसे चाहिए कि अपनेको निर्बल मान कर ईश्वरसे प्रार्थनापूर्वक सहाय माँगे । निर्बलके बल राम होते हैं । लेकिन रामका बल, अर्थात् प्रार्थनाका बल, तभी प्राप्त होता है जब कोई सचमुच अपनेको निर्बल ही मान लेता है । पाप अहंकारसे नहीं जीता जा सकता। और ईश-कृपाकी एक किरण पापको क्षार कर सकती है। प्रश्न-क्या विवाहित स्त्री-पुरुपके लिए आजीवन उसी प्रकार किसी भी हालतमें परस्पर बँधे रहना ही हितकर है ? अथवा किसी दशामें अलग-अलग हो जाना भी हितकर ही होगा? उत्तर--हितकर हो, तब उन्हें अलग हो जाना चाहिए। किस दशामें संयुक्त जीवन उन दोनोंके और समाजके लिए अवाछनीय है और कब तक वह हितकर है, इसका निर्णय करनेवाले वे दोनों और तात्कालिक समाजके नीति-मान्य पुरुष हो सकते हैं । यह जरूर है कि अलग होनेकी तबियत मनमें आते ही यह समझ लेना उचित नहीं है कि दोनोंके अलग हो जानेसे झगड़ा मिट जायगा और चैन छा जायगा । इस मामलेमें सीधा-सा एक लक्षण निर्दिष्ट किया जा सकता है । पति-पत्नी एक-दूसरेको छोड़नेके प्रश्नका विचार उसी
SR No.010836
Book TitlePrastut Prashna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1939
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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