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________________ कर्त्तव्य-भावना और मनोवासना ५१ पूर्णता भी नहीं हो सकती है । वह पूर्णता तो समस्तके साथ ऐक्यो पलब्धिमें ही है। लेकिन बस, इससे आगे बढ़ना अथाहमें डूबना है । इससे यह चर्चा यहीं रोके । प्रश्न-(१) क्या आनन्द एक प्रकारकी अनुभूति ही नहीं है ? (२) क्या अनुभूतिके बिना भी आनन्द जैसा भाव संभव है ? (३) क्या वाह्य वस्तुके स्पर्शके विना कोई अनुभूति हो सकती है ? (४) क्या उस दशामें वह जड़ता ही नहीं कही जा सकती? (५) हम भर नींद सोते हैं, अथवा जगते हैं, जगनेमें रोते हैं या प्रसन्न होते हैं,--इन अवस्थाओंमेंसे आप किसे पसन्द करेंगे? (६) आप बूढा होना पसन्द करेंगे, कि जवान ?-बूदा, तो फिर मौत ही क्यों न ? और जवान, तो वह किस लिये ? उत्तर-यह प्रश्नोंकी बौछार हो गई । खैर, एक एकको लें। (१) आनन्द अनुभूति है। (२) जवाब ऊपर आ गया । (३) बाह्य वस्तुके स्पर्शका अत्यन्ताभाव किसी समय भी संभव है, यह मानना ही गलत है । इसलिये यहाँ ‘बाह्य स्पर्श' से मतलब स्थूल स्पर्शसे हो सकता है। हाँ, वैसे बाह्य स्थूल स्पर्शके बिना अनुभूति हो सकती है, और प्रतिक्षण होती है । गुणका स्पर्श नहीं होता, पर अनुभूति गुणकी होती है,-ऐसा क्यों ? हमारी सब धारणायें (concepts ) अनुमान ( inference ) हैं । अपने आपमें इनकी सत्ता नहीं साबित की जा सकती। इसलिये जिसको हमने 'बाह्य' कहा और जिसको हम 'अन्तस्' कहें, वे दोनों इतने एक हैं कि उनमें परस्पर क्रियाप्रतिक्रिया कभी भी शांत नहीं होती। (४) अनुभूतिहीनता जड़ता है । पर यह उस अवस्थापर लागू नहीं हो सकती। (५) मैं किसी एक अवस्थाको क्यों पसन्द करूँगा ? फिर समयका सूक्ष्मतम विभाग मानिये कि हमारे पास सेकिंड है, लेकिन उस सेंकिंडमें ही एक
SR No.010836
Book TitlePrastut Prashna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1939
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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