SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ व्यक्ति और समाज स्वत्वाधिकारी नहीं है ? और ऐसा करने के लिए, भावनाके अतिरिक्त, क्या समझ भी उसकी काम दे सकती है ? ४५ उत्तर--अभ्यास-क्रमसे, हाँ, समझ भी इसमें श्रद्धाकी सहायता देने लगेगी । लेकिन, इसम सिद्धि पानेका काम एक जन्मका तो है नहीं । इसमें जन्म-जन्मांतर भी थोड़े हैं । प्रश्न - लेकिन, ऐसी श्रद्धाके अथवा समझहीके लिए क्या कारण हो सकता है, यह भी तो समझाइए ? उत्तर -- बिना उसके जिसका काम चल सके, वह भाग्यवान् जीव है । इससे अधिक भला मैं क्या कहूँ ? ऐसे सौभाग्यशाली जीवको बेशक जरूरत नहीं है कि वह किसी तरह की श्रद्धाको पास फटकने दे । लेकिन ऐसा वह आदमी है कौन जिसे न श्रद्धाकी जरूरत है, न समझकी ज़रूरत है ? अगर एक ज़र्रा भी उसमें समझ है, तो वही काफी है कि उसे बेचैन बना दें और बेचैनीको बिना श्रद्धाके सहारे आदमी और कैसे सहन कर सकता है, मैं नहीं जानता । प्रश्न – स्वाभाविक और सामान्य तौरपर देखा जाता है कि मनुष्य यही समझते हैं कि वे हैं और उनकी कुछ वस्तुए भी हैं उनका काम आपकी उस श्रद्धा और समझके विना तनिक भी अटकता नहीं दीखता । उत्तर - मेरी श्रद्धा और मेरी समझ से तो बेशक उनका रत्ती भर काम नहीं सरेगा, क्यों कि वह उनकी तो है नहीं । लेकिन, यह माननेका कोई कारण नहीं है कि उनके पास अपनी भी समझ और अपनी श्रद्धा नही है । अपनी समझ के मुताबिक ही कोई कुछ मानता है तो वह मान सकता है । उसका अस्तित्व ही उन्हीं मान्यताओं पर संभव बनता है । लेकिन, यह तो हम देखते हैं कि किसीको दुख कम व्यापता है, किसीको ज्यादह व्यापता है । मुझको यदि दुःख ज्यादा व्यापता है तो मैं अपने को काफ़ी समझदार समझने का हक़ नहीं रखता । चीज़ों को बहुत अपनी मानने लगने से वे दुखका कारण होती हैं । इसीलिए, इस प्रतीतिकी जरूरत कही गई है कि वस्तुएँ किसीकी अपनी नहीं हो सकतीं, कि वे किसीकी अपनी नहीं हैं । प्रश्न – क्या इसी बातको यों भी कह सकते हैं कि जो चीजें
SR No.010836
Book TitlePrastut Prashna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1939
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy