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________________ ४२ प्रस्तुत प्रश्न अन्तर है, लेकिन कोई आदमी अगर राजकारणसे बिलकुल अछूता हो, मान लीजिए कि मंगल ग्रहका वासी ही कोई हमारे बीचमें उतर आया हो, तो उसे, चाहे वह कितना ही घूमे, देशकी सीमा और विदेशकी सीमा कहीं भी दिखाई नहीं देगी। यो भी, क्या डाक-तार आज भी सब देशोंको एक और इकट्ठा नहीं बनाये हुए हैं ? अतः, जहाँ मेल है वहाँ सीमाका प्रश्न ही नहीं उठता। मेलकी मर्यादा किसने बाँधी है ? मर्यादाएँ लड़ाईकी अपेक्षासे, यानी उसकी आशंकाके कारण, बनती और बनानी होती हैं । __समाजकी मर्यादाका प्रश्न इसी अपेक्षासे संभव बनता है। तब मैं कहूँगा कि दुसरे समाजक अहित-चिन्तनमें भी एक समाज अपनी मर्यादाओंका उल्लंघन करता है । लड़ाई ठानना बेशक मर्यादाको तोड़ना है । लेकिन, भयके मारे लड़ना तो नहीं, परन्तु दबकर बैठ जाना और मनमें दुर्भावनाएँ रखना, यह भी मर्यादाका उलंघन है। आदर्श मर्यादित नहीं है, पर कर्त्तव्यनिष्ठा जितनी एकमें है, वहीं तक उसके अधिकारोंकी मर्यादा है। प्रश्न--कर्तव्य मर्यादित नहीं है, पर कर्तव्य-निष्ठा जितनी एकमें हैं, वहीं तक उसके अधिकारोंकी मर्यादा है, क्या इस वातको कुछ स्पष्ट कर कह सकेंगे? उत्तर-हाँ हाँ । मुझे अधिकार है कि मैं हरेकके दुःखको बँटानेकी इच्छा करूँ। दूसरेके दुःखमें साझी होना मेरा कर्तव्य है। अब, दूसरोके दुःखोंमें सचमुच जितना मैं साझी हो जाता हूँ, उनके प्रति क्या उतना ही मेरा अधिकार नहीं हो जाता ? उदाहरण लीजिए। अनजाने किसीके मकानमें घुसना मेरे लिए निषिद्ध ही है। लेकिन, मानिए कि रात-भर मैं पड़ौसमें बच्चेका कराहना सुनता रहा हूँ। सबेरे मैं बेधड़क उस घरमें पहुँचता हूँ। बच्चेकी तबियत पूछता हूँ, दवाई आदिकी व्यवस्था करता हूँ । अब यह साफ है कि अगर मैं सच्ची सहानुभूतिसे प्रेरित हूँ तो अपरिचित मकानमें घुसनेका अधिकार भी मेरा माना जा सकता है । चाहे बच्चेका पिता अनुपस्थित हो, और माता वहाँ अकेली ही हो, और चाहे सामान्य प्रचलित सामाजिकता इसमें दोप देखनेको भी उलारू हो जाय, फिर भी पराये घरमें मेरा वह प्रवेश अनधिकृत नहीं कहा जा सकेगा।
SR No.010836
Book TitlePrastut Prashna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1939
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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