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________________ ५-व्यक्ति और शासन-यंत्र प्रश्न-व्यक्ति और स्टेटके निर्णयमें जब संघर्ष हो, तो क्या व्यक्तिको स्टेटके सामने झुकना चाहिए ? । उत्तर-मैं नहीं जानता कि व्यक्ति अपने इंकारपर कैसे जी सकता है। अर्थात् स्टेटका निर्णय स्वधर्मके विरुद्ध हो तो व्यक्ति नहीं झुक सकता। झुकता है, तो अपने व्यक्तित्वको खंडित करता है, यानी अधर्म करता है। प्रश्न-जब व्यक्तिका स्वधर्म होता है, तो क्या स्टेटका स्वधर्म नहीं होता? और क्या वह व्यक्तिक स्वधर्मसे बड़ी चीज नहीं है जिसके सामने कि उसको झुकना चाहिए ? उत्तर-स्टेटका स्वधर्म क्यों नहीं होगा । बेशक, स्टेटके संचालनकी ज़िम्मेदारी जिन्होंने अपने ऊपर ली है, उनस यही आशा करनी चाहिए कि उन्होंने स्टेटके और अपने स्वधर्मको अभिन्न बनाकर चलना स्वीकार किया है। यहाँ अपनी वहीं पहली स्वयं-सिद्ध धारणा याद रखनी चाहिए कि सचाईमें सव एक है। अगर कोई स्टेट अहंकारके कारण अपनेसे बड़ी सत्ताके साथ अपना अविरोध भूल जाय और विकारग्रस्त हो जाय, तब सच्चे धर्मको माननेवाला व्यक्ति क्या करे ? क्या वह स्टेटकी वेदीपर अपने विवेकका खून कर दे ? स्टेटको ऐसा देवता नहीं माना जा सकता जो सर्वसम्पूर्ण ( infallible ) हो । इसलिए, स्टेटका संचालन जब मानव-धर्मसे अविरोधी न होकर विरोधी हो जाय, तब उसकी सविनय अवज्ञाका हक व्यक्तिका सुरक्षित समझना चाहिए। प्रश्न-उन सब व्यक्तियोंके समन्वित विवेकसे, जो कि उसमें हैं, स्टेट वनती, जीती, और चलती है। तब फिर स्टेटके विवेकमें व्यक्तिके विवेककी अपेक्षा कोई कमी होगी, ऐसी संभावना ही कैसे हो सकती है ? उत्तर-क्यों यह संभावना नहीं हो सकती ? क्या आप, अथवा कोई देश, अपने यहाँके सेनाधिनायकको ही सर्वश्रेष्ठ पुरुष मानते हैं ? हिन्दुस्तानके वाइसराय क्या हिन्दुस्थानके सबसे विवेकवान् पुरुष कहे जायेंगे ? कुछ साल बाद,
SR No.010836
Book TitlePrastut Prashna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1939
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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