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________________ शासन- तंत्र - विचार मानता ही हूँ | मेरी शंका तो यही है कि आजकी परिस्थिति में चुनाव से वह काम कैसे हो जायगा ? क्या वह उस प्रकार हो भी संकगा ? १९ विवेकका वोट हृदयका वोट है। वोट विवेकका ही हो, हृदयका ही हो । इसके लिए या तो प्रत्येक व्यक्तिमें विवेक-शक्ति इतनी जाग जाय कि वह किसी दलीय दबाव से आतंकित न हो, या फिर, वातावरण मेसे दलातंक ही इतना क्षीण हो जाय कि व्यक्तिके विवेक में विकार न आवे । इसका मतलब ही दूसरे शब्दों में यह होता है कि सामूहिक जीवन में अधिकारकी चेतना मंद हो, जिम्मेदारी की ही भावना प्रधान हो । तत्र वोटकी छीन-झपट न होगी । चुनाव तब बहुत सहज काम होगा और बिना कोलाहलंक वह हल हो सकेगा । यो कह सकते हैं कि वह तब इतना तूल ही न पकड़ेगा कि 1 'प्रश्न' कहलावे । ऊपर, परिवार के उदाहरणसे हम क्यों न मान लें कि बिना प्रथाके हमने उस तत्त्वका लाभ उठा लिया है । परिवार में बुजुर्गक प्रमुख माने जाने में यह सुगमता है कि वह बुजुर्ग है । यह उचित ही है, मैं इसमें कोई आपत्ति नहीं देखता । उस बुजुर्ग के दायित्व के पैतृक होने में क्या हानि है ? हाँ, उसमें आशंका बनी रहती है कि परिवारका युवक सदस्य शर्मा शर्मा, सस्कारबश उन्हें बजुर्ग मान तो ले, पर पूरे मनसे वैसा न मानता हो और अंदर-अंदरसे कुढ़े । तो मैं कहूँगा कि उस युवकको खुलकर अपनी विवेक-सम्मत राय प्रकट कर देनी चाहिए । लिहाज़में भी झूठा आचरण नहीं करना चाहिए । अगर मान लिया जाय कि उसने खुलकर कह भी दिया कि अमुक बुजुर्ग परिवार के प्रमुख होने योग्य नहीं है, पर शेष लोगोंको यह बात नहीं जँची, तो युवकका क्या कर्त्तव्य है ? प्रकट है कि सुशासित सोसायटी में जो उसका कर्त्तव्य अथवा परिणाम होगा, वही उस परिवार में भी होगा । मेरे कहनेका आशय यह कि शासकको शासितका विश्वास पात्र होना चाहिए, यह तो सुशासन के लिए अनिवार्य सत्य बात है ही, पर ऐसा सदाशय चुनावकी प्रथा के गर्भ में ही रह और निभ सकता है, ऐसा माननेका कारण नहीं है। बल्कि, चुनावकी प्रथा जबतक अपने तात्कालिक फलद्वारा उस सत्यका समर्थन करे, तभी तक वह प्रथा सह्य है, अन्यथा नहीं । सत्यको प्रथा - गत कहना प्रथाको मुख्य और सत्यको अनुगत बनाना है । कहनेका मेरा मतलब यही है कि चुनावकी
SR No.010836
Book TitlePrastut Prashna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1939
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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