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________________ प्रस्तुत प्रश्न ~~~ier ......... निश्चय ही आशा करनी चाहिए कि काफी संख्यामें ऐसे लोग प्रस्तुत होंगे जो बिना खून लिये अपना खून दे देंगे । उस स्वेच्छा-पूर्वक अहिंसा-भावनाके साथ बहाये हुए खूनसे लोकमतमें चैतन्य भर जायगा । वैसा जागृत जनमत ही मानवताके पक्षका सच्चा बल होगा। मेरा विचार है कि इस मामलेमें अन्तर्राष्ट्रीय सेना, या पुलिस, या अंतर्राष्ट्रीय गुप्तचर-विभाग अन्ततः हमारी मदद करनेवाले नहीं बनेंगे । क्यों कि, यह सर्वथा असत्य है कि हिंसा हिंसासे शान्त हो सकती है । 'व्यावहारिक के नामपर पहले ऐसी ही बातें सूझती हैं । पर जब तक राष्ट्रोंमें अन्तर्राष्ट्रीय (=भाईचारेकी ) भावना नही है, तब तक 'लीग आफ नेशन्स' जैसी संस्थाको व्यवहारोपयोगी पाना भी असंभव है । ____तब यही शेष रहता है, और यह पूर्णतः व्यावहारिक है, कि मेल और एकतामें विश्वास रखनेवाले अपनी जानको वैसी ही सस्ती समझ लें जैसी कि हिंसामें विश्वास रखनेवाले दूसरेकी जानको समझते हैं । वे अपनी जान देनेको तैयार हो जायँ, जैसे कि हिंसावालोंकी सन्नद्ध फौजें जान लेनेको तैयार रहती हैं । ___ सच बात यह है कि यदि शक्ति नीतिसे जीतती दीखती है तो इसीलिए कि जब शक्तिमवी अपनेको बचाता नहीं है और खतरे उठाकर अपने मंतव्यपर दृढ़ रहता है, तब, नीति-माननेवाला वैसे ही अपने संकल्पपर कटिबद्ध होकर खतरे नहीं उठाता । वह शांति चाहता है, पर उसकी कीमत चुकाना नहीं चाहता। इसका उपाय यह है कि नैतिक पुरुप कर्मण्य भी हो ।
SR No.010836
Book TitlePrastut Prashna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1939
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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