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________________ ३ - औद्योगिक विकास : मजूर और मालिक प्रश्न - वर्त्तमान औद्योगिक विकास और उसके साथ पैदा होनेवाली श्रेणी -युद्ध आदि अहिंसा - विरोधी भावनाओंकी बादको देखते हुए तो आज यह उम्मीद नहीं दिखाई देती कि मानव समाजमें अहिंसा वृत्ति स्थिर हो सकेगी। साथ ही यह भी स्पष्ट है कि इस वृत्तिके सिवा मानव समाजको शान्ति या सुख नहीं मिल सकता । तो फिर, अहिंसा-वृत्ति और औद्योगिक विकासका मेल किस प्रकार जम सकता है ? उत्तर - नहीं जम सकता है और इसलिए वर्तमान औद्योगिक विकासको ही अपनी शक्ल बदलनी पड़ेगी, क्योंकि यह तो मैं असंभव मानता हूँ कि हिंसा आदमीका स्वभाव बन जाय । वह औद्योगिक विकास, जिसमें कि परस्परकी स्पर्धाके कारण बल आता है, मानवताको सुख-चैनकी ओर नहीं ले जा सकता । इससे एक जाति अथवा एक देश समृद्ध होता भले ही दीखे, पर उसी जाति या उसी देशको थोड़े दिनों बाद यह पता चले बिना न रहेगा कि उस समृद्धि में उसका विनाश भी है । साम्राज्य - विस्तार, जब तक वह विस्तार होता रहे, अच्छा लगता है; लेकिन वही साम्राज्य एक रोज़ बोझ हो आयगा, यह निश्चय है । जिसमें माल तैयार करनेवालेको उसकी खपत के लिए मंडियाँ खोजनी पड़ती हैं, अर्थात् जहाँ उत्पादन उत्पादन के निमित्त, अथवा दूसरे शब्दों में पूँजीके हित में किया जाता है, ऐसा औद्योगिक विकास विनाश भी है । क्यों कि, जो लोग ऐसे औद्योगिक विकास में अग्रसर होते हैं वे किसी दूसरे देशों के लोगोंको प्रमादी और परावलंबी भी बनाये रखते हैं । माल तो तैयार होते रहना ही चाहिए, क्यों कि मशीन में पैसा जो खर्च हुआ है । चाहे उस मालकी अब जरूरत हो या न हो, मशीन में लगी पूँजीका पूरा मुनाफा वसूल होना ही चाहिए ।' इस नीतिका परिणाम यह होता है कि कृत्रिम साधनों से उस मालकी माँग पैदा की जाती है और फैलाई जाती है । फलस्वरूप देखने में आता है कि जीवनकी जरूरी आवश्यकताएँ अधूरी रह गई हैं, फिर भी, बाजार आसाइशकी अनावश्यक चीजोंसे पटा पड़ा है । जिसको अँग्रेजी में 'लक्ज़रीज़' कहते हैं, यानी I
SR No.010836
Book TitlePrastut Prashna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1939
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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