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________________ प्रतिभा १७१ उसके विकासके प्रमाण नहीं । इतिहासके महापुरुषों के भी महापुरुष वे समझे गये हैं और समझे जायेंगे जिनमें प्रतिभाका चमत्कार उतना नहीं जितना कि अखंड साधनाका प्रकाश प्रकट होता है। प्रश्न-लेकिन क्या आप न्यूटन, कालिदास और महात्मा बुद्धको उनके अलग अलग व्यक्तित्वमें बड़ा माननेको तैयार हैं ? यदि हैं, तो क्यों कर वे सब बड़े होते हुए भी विशेषताओंमें विभक्त हैं ? क्या उन विशेषताओंमें हम प्रतिभाहीको विकसित हुआ नहीं कह सकते? उत्तर-काम चलाने के लिए जिसको आप चाहें उसको मुझे बड़ा माननेमें आपत्ति नहीं है । आज मैं चप्पल सीनेका काम सीखना चाहँ तो निःसंकोच एक चमार भाईको मैं बड़ा मान लूँगा । उदाहरण यह जरा अतिरंजित है, फिर भी केवल यह दरसानेके लिए है कि यहाँ प्रयोजनवाले बड़ेपनकी बात नहीं है, यहाँ तो उस जीवन-तत्त्वकी शोधका प्रश्न है जिसके अनुसार मानवनीति और समाज-नीति निर्धारण करना होगा । तब तो यही कहना होगा कि आपके गिनाये गये इन नामोंमें बुद्धके जीवनकी विशेषता ऐसी है कि उसमें कोई रंगीनी न थी । उसमें किसी प्रकारकी प्रखरता न थी। उसका महत्त्व अधिकाधिक नैतिक था और प्रेम उसका स्वरूप था। इससे बुद्धकी विशेषताको मैं ऐसा मानता हूँ जो प्रयोजनके कारण आदरणीय नहीं है, प्रत्युत स्वभावमें ही वह स्पृहणीय है। वह सदा सबको अनुकरणीय हो सकी है। अर्थात् वह सब काल और सब देशके लिए है और किसी विशेष प्रकारके व्यवसाय आदिसे संबंधित नहीं है । कालिदास कवि थे, न्यूटन वैज्ञानिक थे। कवित्व और वैज्ञानिक होनेमें थोड़े-बहुत धन्धेका भी मेल है। उनमें स्वकीय भी कुछ है, जब कि बुद्ध में तो अपना कुछ है ही नहीं, सब समर्पित है । सब सबका है । बुद्ध निःस्व हो रहे, इससे वह मानवताके सर्वस्व हो गये। उनकी प्रतिभा यदि है तो शुद्ध मानवता है । विकासको मैं पूरे तौरपर इसी मानवीय परिभाषामें समझना चाहता हूँ। यदि कोई साहित्य-रसिक न हो तो कालिदासकी विशेषतासे वह अप्रभावित रह सकता है । इसी तरह तत्त्व-ज्ञानकी आरंभिक जानकारी न रखनेवाला न्यूटनके महत्त्वसे अछूता रह सकता है । लेकिन बुद्धसे प्रभावित होनेके लिए तो आदमीका आदमी होना ही काफी है। प्रश्न-नैतिकता और प्रेमका जो बटप्पन बुद्धको प्राप्त हुआ,
SR No.010836
Book TitlePrastut Prashna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1939
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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