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________________ २२-जीवन-युद्ध और विकास-वाद प्रश्न-Survival of the fittest अर्थात् योग्यतम ही जिन्दा रह सकते हैं, इस सिद्धान्तमें क्या आपका विश्वास है ? और 'योग्यतम'का आप क्या अर्थ लगाते हैं ? उत्तर-यह तो मेरे पूछनेकी बात है कि मैं उसे क्या समझू ? मामूली तौर पर जिस अर्थमें वह शब्द प्रयुक्त किया जाता है, उसमें मुझे कोई महत्त्व नहीं दिखाई देता । आज इस दुनियामें कीड़ा है, चींटी है, हाथी है, आदमी है, मशीन है,-क्या इन सबकी योग्यता ( fitness ) एक-सी है ? मान लीजिए कि आदमी योग्यतम ( fittest ) है, तब क्या ऐसी दुनियाकी कल्पना की जा सकती है जब आदमी ही आदमी रह जायगे ? हीन समझा जानेवाला कोई भी और प्राणी नहीं रहेगा ? अव्वल तो ऐसी कल्पना की नहीं जा सकती, पर अगर यह संभव भी हो, तो वैसी सपाट वैचित्र्य-हीन दुनियाको कौन पसंद करेगा ? इसलिए अगर भिन्न योग्यतावाले बहुत तरहके प्राणी आज एक ही साथ इस धरतीपर जी रहे हैं, तो आप ही बताइए कि Survival of the Fittest का मुझे क्या मतलब समझना चाहिए ? प्रश्न-यह तो आप मानते ही हैं कि विभिन्न योग्यतावाले प्राणी जी रहे हैं। क्या आप नहीं देखते कि उनकी योग्यताकी माप भी पारस्परिक संघर्ष में (=struggle में ) उनकी टिकनेकी क्षमताके अनुपातके मुताबिक हुई है ? जिसमें जितनी क्षमता है, उतना ही जीवनमें उसको स्थान प्राप्त है। कम योग्य अपनेसे अधिक योग्यकी अधीनतामें है, यहाँतक कि कहीं कहीं वह केवल साधन-मात्र है। साथ ही ऐसे प्राणी भी हैं जो सर्वथा अक्षम होनेसे घटते और मिटते जा रहे हैं । उस Survival of the fittest के सिद्धांतको मानते हुए भी वैचित्र्य संभव ही नहीं अनिवार्य भी दिखाया जा सकता है। उत्तर-वह तो ठीक है। लेकिन, Survival से क्या मतलब ? जब शायद मनुष्यकी उत्पत्ति नहीं हुई थी, तब पानीमें मछली थी। वह पानीकी
SR No.010836
Book TitlePrastut Prashna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1939
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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