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________________ व्यक्ति और परिस्थिति - -now मानकर बाह्य परिस्थितिके नीचे झुक जाना उचित नहीं है, क्योंकि यदि सच्चा समन्वय है तो सूक्ष्ममें ही है, स्थूलमें तो पृथक् भावकी ही प्रधानता हो आती है। प्रश्न-आपने कहा कि बाह्यको अन्तरंगके अनुकूल बनाना इष्ट है। लेकिन देखनेमें तो ऐसा आया है कि चराचरका विकास बाह्यके ही अनुकूल हुआ है। किसी भी प्राणी, समाज, संस्कृति या सभ्यतासे क्या यह प्रतीत नहीं होता है कि वे उस देश-कालहीके लिए हैं और बने थे? उत्तर-देश-कालकी अनुकूलता तो जरूरी है । लेकिन उस अनुकूलताके द्वारा जीवन अभिव्यक्त होना चाहिए, वैसी अनुकूलता स्वयंमें साध्यान्त नहीं है । जहाँ प्रगति है वहाँ यही कहना अधिक यथार्थ होगा कि देश और कालमेंसे जीवन-अनुकुलता प्राप्त कर ली गई है, न कि जीवन देशकालाधीन हो गया है । जीवन निरन्तर गतिमान और वर्द्धमान तत्त्व है । देश-कालके अनुकूल होना ही नहीं, प्रत्युत देशकालातीतके अनुरूप होना सिद्धि है। क्योंकि वर्तमानमें तो भविष्य बंद नहीं है और न किसी विशिष्ट स्थितिमें सब संभावनाएँ समाप्त हैं, इसलिए सच्चा जीवन देश-कालसे परिसीमित नहीं होता। हाँ, देश-कालकी अनुकूलताद्वारा, मानो उस चित्रपटपर वह अभिव्यक्त ज़रूर होता है। लेकिन इस बहसका छोर न मिलेगा। ऐसे ही चलोगे तो इस प्रश्नपर जा पहुँचना होगा कि 'स्व' पहले है या 'पर' पहले है । किन्तु 'स्व' शब्दके उच्चारमें ही 'पर'की स्वीकृति है। इन दोनों में पहले-पीछेका निर्णय बेकार है। ___ यह स्पष्ट है कि यदि हमें धर्म-जिज्ञासा और कर्त्तव्य-कर्मके दृष्टि-कोणसे बात करनी है, तो 'स्व' की ही परिभाषामें करनी होगी। केवल वैज्ञानिक, अर्थात् भावना और तत्कालसे असम्बद्ध, दृष्टिकोण व्यक्तिकी तुलनामें परिस्थितिको प्रधान दिखा सकता है। उसे अयथार्थ कहनेका भी अभिप्राय मेरा नहीं है। लेकिन कर्मण्यताके विचारसे वह दृष्टिकोण पर्याप्त नहीं है। उस लिहाजसे तो परिस्थितिपर व्यक्तिकी विजयहीकी बात की जायगी । प्रतिभा इसी प्रकारके संघर्ष-फल और विजयका नाम है। प्रश्न--तब क्या व्यक्तिकी आदर्श-भावना यह हो कि वह शेष साष्टके सामने अपनेको न झुकने दे, बल्कि खुद उसे झुकनेको मजबूर करे ? तब तो समपर्णापेक्ष प्रेम और मेल-मिलापके
SR No.010836
Book TitlePrastut Prashna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1939
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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