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________________ अर्थ और परमार्थ उसे खोलेंगे और सुलझाएँगे । और वह अगर सुलझ गई और खुली तो ऐसे ही खुलेगी, अन्यथा नहीं। ___ ऊपर जो अरूप-अमूर्तके भजनकी बात कही गई, वह इसी समूचे जीवनकी अपेक्षाको याद रखकर कही गई । सामयिक-कर्मके प्रोग्रामकी ध्वनि उसके आसपास नहीं है । वह कोरी आध्यात्मिक-सी बात मालूम होती है । किन्तु ऐसा इस कारण है कि सामयिक कर्मका प्रोग्राम देना न यहाँ मेरा लक्ष्य है न आपका ही। वह प्रोग्राम माँगने का अभिप्राय होगा। वैसा प्रोग्राम व्यक्ति अपनी शक्ति और अपनी स्थितिके सामंजस्यसे स्वयं प्राप्त करेगा । वह सबको अन्दरसे मिलेगा। बाहरसे वह आरोपित हो नहीं सकता है और मैं स्वीकार करता हूँ कि उस दृष्टिसे आदर्श चर्चा, जो कि अमूर्त-चर्चा ही हो जाती है, अत्यन्त आवश्यकीय विषय है।
SR No.010836
Book TitlePrastut Prashna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1939
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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