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________________ समाज-विकास और परिवार-संस्था १०५ प्रश्न--यदि परिवारका कोई व्यक्ति ऐसे रोगसे ग्रसित है कि उसके द्वारा परिवारको ख़तरा है, तो परिवार उसके संबंध क्या करेगा? उत्तर-खतरेसे अपनेको और अपने उस बीमार अंगको बचानेका प्रयत्न करेगा । हमारा हाथ खराब हो जाय, तो हम क्या करेंगे ? स्पष्ट है कि कोशिश करेंगे कि वह अच्छा हो जाय । जरा खराबी होते ही उसे अद्भुत नहीं मान लेंगे। अगर उससे समूचे जीवनपर ही आ बने, तो उसे, हाँ, कटा देंगे। प्रश्न--तो कटा देनेसे आपका क्या मतलब ? उस व्यक्तिके जीवनांतसे है अथवा केवल परिवारसे अलग कर देनेसे ? उत्तर-जीवन तो जिसने दिया है, वही लेगा। परिवार जितना जो देता है, उतना ही उससे ले सकता है । लेकिन परिवारकी जिम्मेदारी उस रुग्णाङ्गको अलहदा करके समाप्त कहाँ होती है ? घरका कूड़ा क्या दूसरे घरके आगे डाल देनेसे काम खत्म हो जाता है ? वह काम तो तभी खत्म होगा, जब कूड़े का कूड़ापन खत्म करके हम उसे कंचन बनाना सीखेगे । जो मैला है, वह खाद बनकर उपयोगी होता है कि नहीं ?–अर्थात् जो दूषित है, उसका दोष फैले नहीं, इसका ध्यान रखना तो जरूरी है ही। लेकिन स्वयं दूषित भी दोषसे मुक्त हो जाय, यह भी तो देखना है । इस तरह परिवारका धर्म आत्मरक्षापर ही समाप्त नहीं हो जाता, आगे भी जाता है।
SR No.010836
Book TitlePrastut Prashna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1939
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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