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________________ १०० प्रस्तुत प्रश्न है और उतना कमा कर देता है । नहीं देता तो गड़बड उपस्थित होती है और देता है तो हो सकता है कि उसका मन उस कमाईको न्यायोचित न मानता हो । फिर भी, वह ऐसा करनेको बाध्य है । तो इस उदाहरणमें कहा जा सकेगा कि उसने परिवारसे अपने विकासको सीमित बना लिया है । अगर परिवार इतर जनोंसे मुझे पृथक् और विरुद्ध डाल देता है, तो वह बाधा है । ऐसा नहीं, तो परिवार आत्म-विकासमें सहायक है ही। प्रश्न-क्या परिवारके प्रति अपने पनकी भावना मूलतः दूसरेको गैर समझनेहीकी भावनास उद्भूत नहीं होती है और इस प्रकार परिवारकी शुभ कामनामें दूसरोंके प्रति सद्भावना कम नहीं हो जाती है ? ___ उत्तर-मूलतः नहीं । मैं पहले अपनेको ही अपना समझना आरंभ करता हूँ, परिवार मेरा इस संकीर्णतासे उद्धार करता है । आरंभमें तो वह मेरा भला ही करता है, आगे जाकर उसके कारण मैं अपना अलाभ करने लगूं तो बात दूसरी है । यह तो अकल्याणकर ही है कि मैं परिवारमें अपना स्वत्व-भाव इतना मानने लगूं कि धर्माधर्मका विवेक भूल जाऊँ । प्रश्न- वालक माता पिता आदि कहना-समझना सीखता है, तो क्या धर्माधर्मके विचारसे ? क्या इस प्रकार परिवारको अपना समझनेमें अहंकारकी वृत्ति कमजोर पड़नेके बजाय दृद ही नहीं होती है ? उत्तर--अहंकारकी दृढ़ताको और क्षीणताको समझना चाहिए । ममत्व जितना संकीर्ण है, उतना ही तीक्ष्ण है। अगर वह व्यापक है, तो उसकी तक्ष्णिता कम हो जायगी । रागात्मक वृत्तिको अपने मेंसे निर्मूल नहीं किया जा सकता । उसको कुचलना ही उपाय हो, ऐसा नहीं है । कुचलकर उसे मिटाया नहीं जा सकता । उन वृत्तियोंको व्यापक बनानेसे ही उनकी धार मारी जाती है । मैं अगर सबको प्रेम करने लगू, तो किसी विशेषके प्रति उस प्रेमके खोटे होनेकी संभावना भी नहीं रहेगी। ममता खोटी तभी होती है जब वह किसी दुसरेके प्रति अवहेलनाके बलपर पोषण पाती है । अन्यथा, गुणके प्रति ममता अर्थात् व्यापक ममता दुर्गुण नहीं है। अहंकारके विषयमें भी यही बात है। अहंभाव मुझमें जितना सिमटता.
SR No.010836
Book TitlePrastut Prashna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1939
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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