SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 110
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आकांक्षा और आदर्श ९३ प्रश्न-क्या आदर्श भावनामें छोट-बड़ेका अहंकार-भाव अनिवार्य रूपसे आता है ? यदि केवल अपनी सत्ताके आग्रहहीका (=Assertion हीका) भाव अहंकार है, तो क्या कोई भी वस्तु सत-रूप ( Existent ) होकर उससे मुक्त हो सकती है? उत्तर-समर्पणमें अहंकार मिटता है । अन्य व्यापारोंमें अहंकार रहता है। अहंकार बिल्कुल मिट जाय तो दुई न रहे । तब शरीर ही न रहे । इसलिए पूरी तरह तो अहंकार इस जीवनमें मिटता नहीं। फिर भी जितना वह कम हो, उतना ही उत्तम है। ___ यह माननेका कारण नहीं है कि अहं-भावके अभावमें निर्बलता आ जायगी। बल्कि अहं-भाव आदमीको संकीर्ण बनाता है, समपर्ण व्यापक । और व्यापकता ही प्रबलता है। प्रश्न-छोटे-बड़का अहंभाव एक बात है, और आदर्शका (जिसमें समर्पण आ सकता है ) भाव दूसरी बात है। क्या आप इन दोनोंको त्याज्य समझते हैं ? उत्तर --बस, जिसमें समर्पण है, वह ठीक है । त्याज्य नहीं वह विधेय है । ऊपरसे वह अहंकार-सा भी दिखलाई दे, तो भी विपत्ति नहीं । निर्बलता धर्मभावका लक्षण नहीं है; किन्तु धर्मबल, चूंकि उसमें विनयकी लचक है, सामान्य बलसे अधिक यद्यपि भिन्नरूपसे प्रबल होता है । पत्थर मजबूत है, लेकिन हथोड़ेसे टूट जाता है । किन्तु इस बलसे बली आदमी गालीसे अथवा गोलीसे भी नहीं टूटता । वह द्वेषका जवाब प्रेमसे देता है। द्वेषमें अहंकार करनेवाला आदमी उसपर अपने प्रहारका असर न देखकर अपनी विफलतामें क्षुब्ध होकर कह सकता है कि यह आदमी बड़ा मानी है, किन्तु, वैसा मान बुरा क्यों है ? उसमें बुराईकी बुराई ही है, शेष सबकी तो उसमें भलाई ही होती है। प्रश्न-जीवनके आदर्शीकृत सौंदर्यमें मनुष्य जिस ईश्वरको देखता आया है, और देखता है, क्या कभी भी वह सर्वदा प्राप्त हो सकेगा? दूसरे शब्दोंमें, क्या कभी भी प्राणीके भीतर आदर्श, सौंदर्य अथवा स्वप्न ( =Vision) का बनना बंद हो सकेगा? यदि ऐसा है, तो क्या ऐसे ईश्वरको सर्वथा प्राप्त कर लेनेकी आकांक्षा मानवका भ्रम ही नहीं है ?
SR No.010836
Book TitlePrastut Prashna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1939
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy