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________________ १ प्रतिगंध, २ दूरीकरण [ हटना ] ३. चिकित्सा १ सहिगुता, प्रेम, दंड । E १- प्रतिरोध [गेको ] आघात आदि को रोकलेना, उसे होने न देना या होनेपर भी उसका असर अपने उपर न होने देना [रतिरोध है। जैसे छत्ते से वर्षा की चू के रोकते हैं, हाल तलवार की चोट रोकते हैं, मकान के द्वारा वर्षा नृप टेड रोकते हैं, किवाड़ के द्वारा चोर आदि को रोकते है व नव रोध है । २- दूरीका डटना [हुड ] जहा रोव करने की शक्ति न हो वहा उससे वचने के लिये Feart किनारा काटना, आदि दूरीकरण है । जैसे भूकम्प को रोक नहीं सकते तो वहा से 1 } जाना पड़ता है, बाढ पीड़ित स्थान से भी इटाना पड़ता है, जहा प्लेग आदि को रोक नही पाते, वहां भी पड़ता है। पर यह तो एक तरह की कायरता कहलाई । क्या वायरता भी कल्याण का उपाय सकती है 1 पर चोरी का मात्र ढूढ़ना आदि चिकित्सा है। ४ - सहिष्णुता (फीशी ) जब दुःख रोका न नासके, उससे बचा न जा सके उसे हटाया न जासके तब उसे धीरज से सहन करना सहिता है। सहिष्णुना से दुःख का संवेदन कम होता है, चिकित्सा में भी सुविधा होती है, इसका पराका विजय मिलजाती है । उत्तर- गर्लमे अगर पहाड़ श्रजाय तो उमेवाड़ फेंकने के लिये सिर फोड़ते रहने का नाम दुरी नही है, बहादुरी है उसके उपर से या दायें से freeter | आग लगगई हो तो उसे बुझा डालना चाहिये, पर जमाना सम्भव न होग से बच निकलने को कोशिश न करना, उसी में जल मग्ना बहादुरी नहीं है । यहादुरी विश्ववर्धन में है. मुदता में नहीं | हा विश्वखवर्णन के लिये कभी हो. कराना आवश्यक ऐसा करनेमें बहादुरी क्लीपर नरर्थक न होजाने में बहादुरी नहीं है। विश्व कक मार्ग से भागने का नाम कामार्ग में आये वाद से नाम वायरता नहीं है। ता है, पर - चिकित्सा (थियो ) दुख को जब रोता उससे बच न सके वह याही जाय उनके लिये कोशिश करना चिकित्सा । माना योग होजाने प्रश्न- जब दुःख सिरपर व्यापता है तब हर एक प्राणी सहता ही है. इस प्रकार सहिष्णुना जब अनिवार्य रूप से होती है उसको उपाय में बतलाने का क्या अर्थ | उत्तर - किसी न किसी तरह भोग लेने का नाम सहिष्णुता नहीं है, किन्तु चाणक्य विचलित हुए बिना सहलेने का नाम सहिष्णुता है। दीन बनकर रोरोकर जो सहजाता है वह तो भोगलेना ( घीशो) है महना ( फीशो) नहीं। भोगना रोरोकर होदा है. सहना हँस हँसकर होता । दुःख में जो जितना चीर विचलित और अधिकृत है वह उतना ही सहिष्णु है। ये चार प्रकार के उपाय हो स तरह के दुखों के लिये उपयोगी हैं पर प्रेम और दण्ड प्राकृतिक दुःखो से उपयोगी नहीं हैं । प्राकृतिक दुन्न किसी व्यक्ति की इच्छा से नहीं आते जिसमे प्रेम वाद का उसपर प्रभाव पड़े और वह अपनी इच्छा से इन दुखों से हमे मुक्त करने जो लोग प्राकृतिक कष्टो से बचने के लिये भक्ति पूजा करते हैं प्रकृति को भेंट चढ़ाते हैं, पानी माने के लिये भजनपूजा होम यदि करते हैं व सेलेपन का परिचय देते हैं जिना कहा जाना चाहिये । प्रेम ( भक्ति मैत्री बस ) न का प्रभाव समझदार है. प्रकृतिपर नहीं ही पड़ता अप्रेल)-दूसरे पतियों के द्वारा हमे जो दुख सहना पड़ते हैं उनमें उन परियों का स्वार्थ और अहंकार कारण होता है। रेम के द्वारा इन दोनो पत्तियां काफी अ लगाना है और वे ही है।
SR No.010834
Book TitleSatyamrut Drhsuti Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1951
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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