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________________ - [१४] सत्यामृत -- - - - जाता है। सत्य अहिंसा विवेक सरस्वती श्रादि गुणदेव [ रमलीम] को दिव्य व्यक्ति मानलिया जाता है। इस दर्शन सत्येश्वर [ सत्येशा ] इस कुदम्य के परमपिता । से जहा अपने गुणो या मनोवृत्तियों की उपयो- सारा कुट्रम्ब जिनकी सेवा करता है। गिता अनुपयोगिता लधुता महत्ता आदि का परि- अहिंसा माता [ मम्मेशी] सत्येश्वर की पत्नी चय मिलता है वहा मन को बहुत अच्छा आश्वा और बाकी कुटुम्ब की माता सन भी मिलता है। ईश्वरवादी मनोवृत्ति को तो या मानामहो । विश्वप्रेम ही इनका असीम सन्तोप होता है। संकट में धैर्य, अस- रूप है। अहिंसा शह निषेधात्मक फलता में भी आशा उत्साह, धमा में समभाव, नहीं किंतु विन्यात्मक है अहिंसा का विश्ववन्धुत्व, कर्मयोग आदि के लिये यह रूप. या प्रसज्य नहीं पयुदास है. जिससे दर्शन बहुत उपयोगी है। साधारण जन से लेकर भावान्तर का बोध होता है, जिसका बड़े से बड़े महात्मा तक को इससे लाभ होता है अर्थ होता है विश्वप्रेम । मानवभाषा और बहुत कुछ सरलता से यह दर्शन होजाता है। का मम्मेशी शद इनके लिये उपयुक्त है । मम्म का अर्थ है विश्वप्रेमी दूसरा गुणदर्शन भी ऐसा ही उपयोगी है बनना । सम्मेशी विश्वमकी अधिपर इससे ईश्वरवादी और अनीश्वरवादी दोनों ष्ठात्री भगवती है। ही समान रूप में लाभ उठा सकते हैं। और रूप- मुक्तिदेवी [ जिन्नोजीमी ] सत्यलोककी संचालिका, दर्शन की अपेक्षा गुणदर्शन का रास्ता सीधा, भगवानकी सबसे बड़ी सन्तान। इसलिये निकट का है। रूपदर्शन का रास्ता घूमता विवेकदेव [कोजीमा ] भगवान सत्य और हुआ जाता है इसलिये दूर का है। पर गुणदर्शन - भगवती अहिंसाके बड़े पुत्र का रास्ता सीधा और निकट का होने पर भी संयमदव [धामोजीमा ], " दूसरे पुन । विज्ञानदेव [इगोजीमा], तीसरे पुत्र । जरा कठिन है जब कि रूपदर्शन का रास्ता दूर उद्योगदेव [मुकोजीमा } का होने पर भी सरल है। दोनों का जीवन में , चौथे पुत्र । कामदेव विगोजीमा ] पाचवे पुत्र । उपयोग है । रूपदर्शन से मन को तसल्ली होती सरस्वतीदेवी [बुधोजीमी ] विवेकदेव की पत्नी। है, गुणदर्शन से बुद्धि को तसल्ली होती है। यह भी ध्यान में रखना चाहिये कि रूपदर्शन के पथ शतिदेवी तपस्यादेवी [तुपोजीमी ] संयम देव की पत्नी। को अंच में गण दर्शन के पथ में मिलना पड़ता गोजीमी विज्ञानदेवकी पत्नी। मीदेवी धनोजीमी ] उद्योग देवकी पत्नी। है । अन्त में गुण दर्शन तो होना ही चाहिये।। कलादेवी चिनोजीमी ] कामदेव की पत्नी। भक्तिदेवी [भक्तोजीमी ] भगवान सत्यकी पुत्री रूपदर्शन (अंचोदोगे) विवेक देव से छोटी। सत्येश्वर के रूपदर्शन में हमें सत्येश्वर मैत्रीदेवी मिस्सोजीमो भगवान की पुत्री, परगपिता के रूप में दिखाई देते हैं। जिनके सयम देव से छोटी। कुटुम्ब मे पत्नी, पुत्र, पुत्रियाँ, पुत्रपुत्रवधुएँ, वत्सलतादेवी [मिनोजीमी] भगवान की पुत्री, उनके मित्र सेवक दास दासियों आदि हैं और ये मैत्री देवी से छोटो। सब गुणरूप हैं। प्रत्येक गुण एक व्यक्ति है। दया देवी योजीमी ] भगवान की पुत्री । इस सत्येश्वर कुटुम्ब का वर्णन करने से सत्येश्वर क्षमादेवी माफोजीमी] भगवान की पुत्री । का रूप दर्शन होजायगा । और गुणों की उपयो- शान्तिदेवी शिमोजीमी | भगवान की सातवीं ' गिता तथा उनका स्थान समझ मे आजायगा। पुत्री।
SR No.010834
Book TitleSatyamrut Drhsuti Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1951
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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