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________________ ७० ] सत्य संगीत श्मण कुछ आ बुद्ध श्रमण स्वामी तू सन्य ज्ञानवाला। त सत्य का पुजारी सच्ची जवानवाला ॥१॥ हिंसा पिशाचिनी जब ताडव दिखा रही थी। तू मात अहिंसा का आया निशानवाला ॥२॥ विद्वान लड रहे ये उन्माद ज्ञानका था । . बन्धुच प्रेम लाया तू प्रेम गानवाला ॥३॥ मुर्दा पडा जगत या सज्ञान प्राण खोकर । तृने उसे बनाया गतिमान जानवाला ॥४॥ दुख से तपे जगत में थी शान्ति की न छाया । तू कल्पवृक्ष लाया सुखकर वितान वाला ॥५॥ विष पी रहा जगत था सब भान भूल करके । तुने अमृत पिलाया तू अमृत पानवाला ॥६॥ मढ मोह आदि हिंसक पशु का बना शिकारी । तुने उन्हें गिराया तू था कमान वाला ॥७॥ है धर्म दुख ही में ' अज्ञान यह हटाया । अति' का विनाश कर्ता त मध्य यानवाला ॥८॥ सब राजपाट छोडा जगक हितार्थ तुने । आंबन दिया जगतको त् प्राण-दानवाला ॥९॥ नि पक्षपात वन कर सन्मार्ग पा सके जग । दुान दूर करके हो सत्य मानवाला ॥१०॥
SR No.010833
Book TitleSatya Sangit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1938
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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