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________________ ६० ] WW सत्य-संगीत निज निजके प्रतिबिम्ब तुल्य तू दिया दिखाई || मानों दर्पन-प्रभा रूप तेरा घर आई ||१४|| 617 NAMAN मुरली की ध्वनि कहीं, कहीं पर चक्रनुदर्शन । कहीं पुष्पसा हृदय, कहीं पर पन्यरसा मन ॥ कहीं मुक्त संगीत, कहीं योद्धाका गर्जन । कहीं डाँडिया रास, कहीं दुष्टोंका तर्जन ॥१५॥ कहीं गोपियों सग प्रेमका शुद्ध प्रदर्शन | भाई बहिनों के समान लीलामय जीवन || कहीं मल्लसे युद्ध कहीं बच्चोंसी बातें | बालक लीला कहीं, कहीं दुष्टों पर धातें ॥ १६ ॥ कहीं राजके भोग कहीं पर सूखे चावल । कहीं स्वर्णप्रासाद कहीं विपदाओं का दल || कहीं मेरु सा अचल कहीं बिजली सा चंचल | वस्त्र भिखारी कहीं, कहीं अवलाका अचल ॥१७॥ कहीं सरलतम-हृदय कहीं पर कुटिल भयकर । कहीं विष्णुसा शान्त कहीं प्रल्येश्वर शकर ॥ कहीं कर्मयोगेश जगद्गुरु या तीर्थंकर । दुर्जनका यमराज सज्जनों का क्षेमकर ||१८|| मानव जीवन के अनेक रूपोंका स्वामी । सत्यदेव भगवती अहिंसाका अनुगामी || अगणित ज्ञान रत्न ये विश्वको दिये । मुझको बस तेरे अखड पदचिह्न चाहिये ॥ १९ ॥
SR No.010833
Book TitleSatya Sangit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1938
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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