SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५० ] सत्य संगीत विपढाऐं अपना भाग-रूर बतलाती। मन-मन्दिर में भारी समान मचाती । ताडव दिखलाती फिरती हैं मदमाती। धीरज विवेक बल तहस नहन कर जाती ।। आओ जगल में मंगल हमें सिखाओ। भुभार-हरण के लिये परा पर आओ ॥ ये विद्यारह है जाट अमग्न्य प्रलोभन । है लूट रहे नव दिवाकर जदयन । निमल बात है. वर्तव्य चिरन्नन । करते हैं ये उदेस्य-हीन चल मन । आओ प्रयभना को अब मार हटाभ। अमर-हरण के निर. रा पर आओ। तुम मर अहंमा के हो पुत्र दुर्ग। नगटगों के प्यारे ।। तुम र अनिबार। नियन के । का जनाओ। दु
SR No.010833
Book TitleSatya Sangit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1938
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy