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________________ २८ ] सत्य संगीत ननुप्प का पागव-भाव पारे । लगे इससि बलहीन मारे ॥ सुशीलता का पद है न बाकी । ___ हुई बड़ी दुर्गति न्याय्यता की ॥५॥ ने सभी के मन स्वार्थिता से। __ भला रेंगे क्यो परमार्थिता से । । वढा अविश्वास अगान्तिकारी । हुए सभी चिन्तित-वृत्तिधारी ॥ ६ ॥ न देख पाई सुपमा तुम्हारी । दुखापहारी निज सौख्यकारी ॥ हुए हमारे गुण नष्ट सारे । मरे बने जीवित ही विचारे ॥ ७ ॥ पशुत्र के मन बने हुए हैं। अगान्ति में निल मने हए हैं। ___रही न मैत्री अविवेक आगरा । वित्तियों ने दिनरात खाया ॥८॥ हुई हमारे मनम निराशा। कृपा करो ढेकर पूर्ण आया ॥ प्रसन्नता मे हलका महालो । विग का बन्धन तोड हाई ॥२॥ 65
SR No.010833
Book TitleSatya Sangit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1938
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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