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________________ २२] सत्य संगीत देवी अहिरवा देवि अहिंसे, करदे जगक दुखों का निर्वाण । 'त्राहि त्राहि' करनेवालोंजा करणा कर कर त्राण ॥ तू है परम धर्म कहलाती सकल सुखोंकी खानि । तेरे दृष्टि-तेजसे होती निखिल-दुःख-तम-हानि ॥ [२] राम कृष्णका कर्मयोग तू जैनोका तपध्यान । बौद्धोंकी करुणा है त ही तनमें प्राण समान ।। तु ही सेवाधर्म यीशु का है तेरा इमलान । तीर्थकर पैगम्बर पैदा करना तेरा काम ।। [३] तर ही पढरज अजनने ज्ञान नयनकी भान्ति । मिट जाती है सकल जगत को मिलनी नवी गान्ति ॥ तेरे करतल की छाया में हटने सार तार । नेग दुग्धपान करने ने घटना पुण्य कन्यार ।।
SR No.010833
Book TitleSatya Sangit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1938
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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