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________________ सत्यब्रह्म तेरी ही एकाध किरण जब कोई जन है पाजाता, ऋपि महर्पि अवतार महात्मा तीर्थंकर तब कहलाता ॥ [३] तेरा ही करुणा-लव पाकर है मसीह होता कोई, तेरा पथ दिखला कर जग के सकल पाप धोता कोई । तेरी आज्ञाके थोडे से टुकडे जो ले आता है, जनसमाजका सच्चा सेवक पैगम्बर कहलाता है ॥ [४] राम कृष्ण जरथुस्त बुद्ध जिन ईसा और मुहम्मद भी, कन्फ्यूशियस आदि पैगम्बर तीर्थकर अवतार सभी । तेरी करुणाके भूखे थे, थे समस्त तेरे चाकर, ___अखिल जगत चलता है, तेरी ही करुणासे करुणाकर ॥ [५] श्रद्धाका अचलत्व, ज्ञानका मर्म, वृत्तका जीवन त, जनसमाज का मेरु दड तू, धर्म कोपगृह का धन त । तेरी ही सेवा करने मे सकल धर्म आ जाते हैं, तेरी करुणा से भिक्षुक भी सारे सुख पा जाते है । पक्षपात का नाम न रहता जहाँ पडे तेरी छाया, अधकार मे गिरता है वह जिसने तुझे न अपनाया । सव धर्मीका सार जगत्का प्राण सब सुखो का आकर, सबके मनमे कर निवास कर विश्व शान्ति हे करुणाकर।।
SR No.010833
Book TitleSatya Sangit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1938
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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