SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कौन कौन 2 तेरा कौन निशान । कौन नू किमाकार, क्या सीमा तेरी, क्या तेरा सामान ॥ कौन त तेरा कौन निशान । अगम अगोचर महिमा तेरी कौन सके पहिचान | कणकणमे डूबे तीर्थंकर ऋषि मुनि महिमावान ॥ कौन तू तेरा कौन निगान ॥ तेरा कण पाकर बनते हैं जन सर्वज्ञ महान । पर क्या हो सकता है तेरी सीमाओं का ज्ञान ॥ कौन त तेरा कौन निगान ॥ नित्य निरन्तर सूक्ष्म - प्रवाही तेरा अद्भुत गान । होता रहता पर सुन पाते हैं किस किसके कान ॥ कोन तू तेरा कौन निशान । दुनिया रोती मैं भी रोता जब बनकर नादान । कितने हैं वे देख सके जो तब तेरी मुसकान ॥ कौन त तेरा कौन निशान || तू है वही चूर करता जो मेरे सब अभिमान । रोते समय आसुओकी धाराका करता पान 11 कौन व तेरा कौन निशान ॥ [ ३ इतना ही समझा हू स्वामी तेरा अकथ पुरान । इतने मे ही पूर्ण हुए हैं मेरे सब अरमान कौन त तेरा कौन निगान । ॥
SR No.010833
Book TitleSatya Sangit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1938
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy