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________________ ७२ ] आत्म कथा इस पर रोटी न बन सकेगी। मैंने बहुत धीरे से उधर पैर बढ़ाया और निकल कर भागा जैसे खूनी खून करके भागता है । उस समय इस रिवाज़ का कारण समझमें नहीं आया था, अव कुछ कल्पना करता हूँ कि इस रिवाज़ का बीज उस ज़माने में है जब विवाह के भेदों में राक्षस विवाह भी गिना जाता था । वरपक्षवाले कन्यापक्षवालों को मार पीटकर पैरों की ठोकर से उन्हें और उनके चूल्हे को फोड़कर कन्या हरण करके ले जाते थे । विवाह का अर्थ था कन्या के लिये किसी कन्यावाले के घर डाका डालना । उसी वर्वरता का भग्नावशेष यह विविध हैं । .: परवारों में यह रिवाज़ कैसे आया कुछ समझ में नहीं आता । शायद इन रिवाजों के आधार पर कुछ खोज की जाय तो परवारों के इतिहास - पर कुछ प्रकाश पड़े | बहुत से रिवाज़ आर्थिक थे । शक्कर के थाल भरना आदि रिवाज़ों का मतलब यही मालूम होता है कि दोनों पक्षों से अगर किसी पक्ष के पास कोई चीज़ की कमी हो तो इस आदानप्रदान के द्वारा वह पूरी हो जाय और किसी को पता भी न लगे । मूल अच्छा है पर अब उस ध्येय की तरफ किसी का ध्यान नहीं है । अर्थ-मूल्क रीतिरिवाज़ों में अधिकांश रिवाज़ दहेज के अंग थे । यद्यपि मैं उस समय कुछ विशेष पढालिखा नहीं था फिर भी दहेज की अन्यायता मेरी समझमें आ चुकी थी । दहेज के विषय में यह ख़याल तो था ही कि यह कन्या पक्ष के ऊपर अन्याय है परन्तु इससे भी अधिक यह ख़याल था कि दहेज लेना
SR No.010832
Book TitleAatmkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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