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________________ ७० ]. आत्म कथा पर इस छोटीसी बात ने मुझे मानों जीवन दे दिया । हमारे जीवन में छोटी छोटी न जाने कितनी घटनाएँ होती रहती हैं कि उनके होने न होने से हमारे जीवन में स्वर्ग नरक का अन्तर पड़ जाता है । छोटा भी कितना महान हैऔर महान भी कितना क्षुद्र है, इसका अच्छा से अच्छा नमूना हमारा जीवन है । विवाहविधि ऋही पुराने ढंग से हुई । सागर दमोह के दिगम्बर जैनियों में विवाह विधि के लिये ब्राह्मण की, संस्कृत मंत्रों की या शास्त्रों की ज़रूरत नहीं होती । विवाह का आचार्यच किसी ख़ास स्त्री या पुरुष को नहीं किन्तु वृद्ध स्त्री पुरुषों, वास कर स्त्रियों को मिलता है । का स्मरण अव अन्ध-- अनुकरण मालूम नहीं है । विवाह में कितने रीति रिवाज़ थे उन सब नहीं है । निःसन्देह वे किसी आवश्यक घटना के होंगे । उन में से अधिकांश का मूल किसी को पर वे परम्परा से चले आते हैं । कुछ रीति रिवाज़ वर की होश्यारी और शिक्षण की परीक्षा के लिये थे, कुछ वर--पक्ष के अत्याचारीपन के स्मारक के रूप में थे, कुछ वरं पक्ष को कुछ भेंट देने के ढंग के रूप में बनाये गये थे । एक जल पात्र में सुपारी डाली जाती थी और वर कन्या उस सुपारी को निकालते थे जो पहिले निकाल ले वही होश्यार समझा जाता था । यह चञ्चलता की परीक्षा के लिये था । एक थाली में आटा डालकर 'ओनामासी सिद्धेभ्यः का भ्रष्ट रूप ] लिखाया जाता था । ' ओं नमः [ थाली में आटा
SR No.010832
Book TitleAatmkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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