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________________ [५७ .: संस्मरण पिताजीने मेरी मामी को दिखलाया तो सचमुच मैं शरमिन्दा हो गया । क्यों कि पिताजी आदि की बातें सुन रक्खी थीं। इससे भी __ सब लोगों का दृढ़ विश्वास हो गया कि मैं सचमुच भोजराज हूं। ... सौभाग्य या दुर्भाग्य से उस समय समाचारों पत्रों का इतना फैलाव नहीं हुआ था और मेरे पिताजी आदि भी अशिक्षित थे, नहीं तो थोड़ीसी ही कोशिश से उस शैशव में ही पुनर्जन्म की कहानी निकलवाई जासकती थी । और मेरी आत्मकथा उस शैशव में ही समाचार पत्रों में रंग गई होती, मेरे चित्र भी घर घर में पहुँच गये होते, और मेरे पिताजी को भी काफी ख्याति मिली होती। खैर, मैं भले ही इस सौभाग्यसे वञ्चित रहा होऊँ पर इससे मानवजाति के सौभाग्य को जरा भी धक्का नहीं लगा। - हां, बात तो ललाट पर के गट्टे की कर रहा था। यह गट्टा बुरा लगता था । एक दिन नं जाने किस कामसे मैं सागर की बड़ी अस्पताल चला गया , वहाँ सिविलसर्जन आँखके अपरेशन कर रहा था। मुझे बड़ा कुतूहल हुआ। मैंने सिविल सर्जन से कहामेरे इस गट्टे का अपरेशन कर सकते हो ? सिविलसर्जन कुछ मुसकराया । एक बालक के भोलेपनं से उसे कुछ आश्चर्यसा हुआ। वह एक प्रौढ़ अंग्रेज था, अंग्रेज होने पर भी वह अच्छी हिन्दी में बोला- कर सकते हैं । मैंने कहा-कब करोगे । बोला-कल करेंगे । मैं दूसरे दिन एक विद्यार्थी को साथ लेकर चला गया। पिताजी · को खबर ही नहीं दी। पर दूसरे दिन भी सिविलसर्जन को फुरसत नहीं मिली । उसने फिर दूसरे दिन आने को कहामैं . फिर दूसरे दिन गया । उसने अपरेशन करना मंजूर किया
SR No.010832
Book TitleAatmkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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