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________________ संस्मरण: [५५ थी। शहर के अन्य मन्दिरों में जब पूजा करनेवालों को जगह नहीं मिलती थी तब यहाँ पूजा करने कोई नहीं आता. था। वृद्धा ने एक पुजारी: रक्खा था जिसे न तो पूजा याद थी, न वह अच्छी तरह पढ़ सकता था, न विधि का ज्ञान था। एक दिन जब मैं पर्युषण में यहाँ..गया तो इस दयनीय दशापर मुझे दया आगई और फिर मैंने अच्छी तरह दो घंटे पूजा की। वृद्धा के आनन्द का पार न रहा। वह बड़े प्रेम से बोली-भैया, जब तक व्रतं. के दिन (पर्युषण) हैं तब तक तो हर दिन पूजा करा जाया करो और इकेत [एकाशन] भी हमारे यहाँ किया करो। . .. मैंने कहा-बउ, (माँ) पूजा तो हम हर दिन करा जाया करेंगे लेकिन इकेत पाठशाला में ही करेंगे। ___ . बस, जब तक मैं सागर पाठशाला में रहा तब तक मैं वहीं पूजा कराने जाया करता था । काकागज के मंदिर की पूजाएँ ही . अंतिम पूजाएँ थीं, फिर तो पूजा से अरुचि हो गई । एक लम्बे समय के बाद जब सत्याश्रम में भ. सत्य भ. अहिंसा की मूर्तियाँ आईं तभी मैंने रुचिसे प्रार्थना की। . . . . . . ... अपरेशन-बाल्यावस्था में दाहिनी आँख के ऊपर ललाट पर एक गट्टा था । मांसपिंड कठोर होकर हड्डी और चमड़ी के बीचमें पत्थर की गोली की तरह रह गया था, जो उँगली लगाने से इधर उधर हो जाया करता था। उसका दर्द बिलकुल नहीं था पर देखने में जरा बुरा. मालूम होता था। . .. . . मेरे पिताजी- तथा अन्य लोगोंने इस का कारण ढूढ़ निकाला था, कि मेरी: आँख पर यह गट्टा क्यों है। उनके मतानुसार मैं
SR No.010832
Book TitleAatmkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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