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________________ नया संसार । २७९ स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता था । . . . . . पर जब मैं वर्धा आ गया और कई बार मिलने जुलने का अवसर आया तब धीरे धीरे यह प्रश्न सुलझने लगा। और अन्त में मार्च १९३७ में हम दोनों ने ही परस्पर विवाहित होना तय कर लिया । यह सम्बन्ध अनेक दृष्टियों से अच्छा था और अन्य दृष्टियों से उसका अच्छापन कम ज्यादा आदि. कैसा भी हो पर पारस्परिक प्रेम और शील की दृष्टि से असाधारण था । शिक्षा सौन्दर्य आदि में इससे अच्छे सम्बन्ध की भी सम्भावना हो सकती थी पर प्रेम और शील के विषय में इससे अच्छे सम्बन्ध की कोई सम्भावना नहीं थी। इस विवाह के विरोध में महात्मा गांधी के पास कुछ लोगों ने चर्चा की क्योंकि मैंने वेणुबाई को दस ग्यारह वर्ष पहिले पढ़ाया था । म. गान्धीजी ने मेरे और म. भगवानदीनजी के साथ इस विषय में काफी चर्चा की और अन्त में. इस विवाह की पवित्रता और उचितता के पक्ष में अपनी राय दी। .. . पहिले तो विवाहोत्सवावर्धा में ही करने का विचार थी पर वेणुवाई के भाई: वलवन्तरावजी, पन्नालालजी आदि ने विवाह में शामिल होने की स्वीकृति दी इसलिये नागपुर में ही विवाहोत्सव करना निश्चित रहा । जब देशभक्तः श्री पूनमचन्दजी गंका के सामने यह बात आई तन्त्र.उनने इस · विवाह को सार्वजनिक उत्सव का रूप दिया । 'दरबारीलाल.. वीणादेवी विवाह स्वागत समिति की स्थापना हुई, जिसमें दर्जनों वकील, धारा सभा के मेम्बर, अनेक नेता तथा सरकारी,कर्मचारी आदि थे । मः भगवानदीनजी विवाह विधि करानेवाले थे। करीब पांच हजार : आदमी: उपस्थित थे।
SR No.010832
Book TitleAatmkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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