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________________ २६८ ] आत्मकथा सन्यास लूँ और जब कि मेरे सामने अपने पुनर्विवाह की समस्या खड़ी थी तब इस प्रकार नौकरी छोड़ना अनुचित ही था । त्यागी जीवन में क्या क्या कठिनाइयाँ आयेंगी इसका चित्रण मित्रों ने किया था और इसमें सन्देह नहीं कि उनका कहना सच था और आज तक के अनुभवों ने उनके शब्दों की ताईद ही की है फिर भी मैं नौकरी छोड़ना चाहता था क्योंकि मुझे खुद अपने पर पूरा विश्वास नहीं था । मैं कुछ मैं सोचता था कि यही वह उम्र है जिसमें मनुष्य अपने जीवन विशेष परिवर्तन कर सकता है। कम उम्र में किये गये परिवर्तन अनुभव शून्य होते हैं और अधिक उम्र में मिट जाती है । इसलिये मैं डरता था कि अगर तरह गुजर गये तो सदैव इसी चक्कर में फँसा रहूँगा । सत्याश्रम आदि का स्वप्न देखता हुआ कदाचित् रोता रोता मर जाऊँगा । परिवर्तन की इच्छा कुछ वर्ष और इसी एक बात और थी कि मैं नहीं चाहता था कि मेरा विवाह . मेरी २००) मासिक आमदनी को देखकर हो में ऐसी ही सहचरी चाहता था जो मेरी फकीरी में प्रसन्नता से साथ दे सके इसलिये मैं विवाह के पहिले ही कुछ कुछ फकीर बन जाना चाहता था इसलिये भी बंबई छोड़ना जरूरी था । इसलिये १ मई १९३६ को ' बंबई से विदा लेकर वर्धा आ पहुंचा I २९ वर्षा आगमन और पितृवियोग सब सामान लेकर पिताजी के साथ २ मई १९३६ को वर्धा आ गया । वर्धा की परिस्थिति ऐसी नहीं थी कि उत्साह या
SR No.010832
Book TitleAatmkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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