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________________ .. बम्बई से विदाई . [२६३ दाम्पत्य में काफी मनुष्यता आगई थी यह कहूं तो भी कोई अत्युक्ति न होगी। २८ बम्बई से विदाई . सत्यसमाज की स्थापना के बाद से ही यह विचार दृढ हो गया था कि नौकरी करते हुए यह महान कार्य न होगा। कहीं आश्रम बनाकर स्वतन्त्रता से बैठना पड़ेगा। आश्रम कब बनेगा और कैसे बनेगा इसका कुछ निश्चय न होने पर भी उसका नामकरण हो गया था और उसके सत्याश्रम नाम की घोषणा भी कर दी थी और समय असमय उस नाम का उल्लेख भी किया करता था। पहिले जो पांच वर्ष तक नौकरी करने का विचार किया था उसके पूरे होने में तो देर थी पर दस हजार रुपये जोड़ने की प्रतिज्ञा पूरी हो चुकी थी। इसलिये जल्दी ही आश्रम के स्थान की तलाश में था पर जैसा जाहिये वैसा स्थान मुझे न मिलसका इसलिये देरी होती गई । शायद एकाध वर्ष और भी निकल जाता पर श्वेताम्बर समाज में भी मेरे विरोध में क्षोभ होने लगा इसलिये सत्याश्रम की स्थापना में कुछ और जल्दी होगई । . . मेरी बड़ी नौकरी मूर्तिपूजक श्वेताम्बर सम्प्रदाय के महावीर विद्यालय में थी । यद्यपि जैनधर्ममीमांसा में दोनों सम्प्रदायों की बहुत सी मान्यताओं का विरोध किया गया था पर श्वेताम्बर साहित्य में ऐतिहासिक दृष्टि से और समाज-सुधार की दृष्टि से अधिक मसाला था इसलिये दिगम्बरों की अपेक्षा श्वेताम्बरों का
SR No.010832
Book TitleAatmkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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