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________________ दाम्पत्य के अनुभव [२६१ अवसर का उपयोग संघवालों ने मेरी पत्नी को अपमानित करने के लिये करना चाहा । सधे हुए ढंग से एक मुनि वहां पहुंचे चौके में कौन कौन है?--इसकी जांच कर. मेरी पत्नी को शूद्रजल त्याग . या कुछ और प्रतिज्ञा कराना चाही जिसका मैं जैन-जगत में विरोध करता था। मेरी पत्नी ने भी. उस बात का विरोध किया । मुनि महाशय इस बात पर अड़ गये कि मैं भोजन नहीं लूंगा । मेरी. पत्नी ने निर्भयता से कहा- मैं अनुचित प्रतिज्ञा नहीं कर सकती मुझे ऐसे पुण्य की जरूरत नहीं है आप खुशी से भोजन लीजिये मैं चौके के बाहर चली जाती हूं। शान्ता की बहिन आदि को यह ना-गवार गुजरा कि मुनि को भोजन कराने के लिये बहिन को चौके के बाहर जाना पड़े इसलिये उनने शान्ता को चौके से बाहर न जाने दिया ।मामला टेड़ा हो गया । सब रिश्तेदार मिहमान और गांववाले जुड़ गये, सब शान्ता को मनाने लगे-बाई, प्रतिज्ञा में क्या हर्ज है ? न हो चार आठ दिन के लिये ले लो । शान्ता एक तरफ और बाकी सब दूसरी तरफ, पर उसने दृढ़ता से कहा---जिस प्रतिज्ञा को मैं ठीक नहीं समझती उसे एक दिन के लिये भी क्यों लूं ? __अन्त में मुनिमहाशय को विना आहार लिये ही जाना पड़ा। शान्ता की दृढ़ता को हठ कहकर किसी किसी ने निन्दा भी की, किसी किसी ने तारीफ भी की, पर इन सब बातों की पर्वाह किये बिना . वह दृढ़ रही । इस घटना के बाद तो उसकी दृढ़ता और बढ़ गई और जब संघ शाहपुर आया, जहां शान्ता के मातापिता रहते थे, तब वहां भी उसके मातापिता के घर किसी मुनि को आहार नहीं
SR No.010832
Book TitleAatmkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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