SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 256
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४४ ] आत्म-कथा परिस्थिति में भी मनुष्य अगर अपने साहस और विवेक को जाग्रत रक्खे तो उसे कोई अच्छा मार्ग मिल ही जाता है। मैं भी अपने को इसी कसौटी पर चढ़ाता हूं और इस महान संकट के आने पर भी, जिस.मार्ग को पकड़ा है उसी पर आगे बढ़ना चाहता हूं । देख कहाँ तक उत्तीर्णता मिलती है और किस ढंग से मिलती है । . . २७ दाम्पत्य के अनुभव ... जब मेरा विवाह नहीं हुआ था तब एक दिन एक वयस्क महिला ने मजाक में कहा कि-"जब दरवारीका विवाह होजायमा, तब वह अपनी स्त्रीके ही कहने में लग जायगा ।" यह सुनकर मुझे बड़ा अपमान मालूम हुआ और मैंने जोर देकर विरोध किया कि 'कभी नहीं ! ऐसा कभी नहीं हो सकता !' एक दूसरी वृद्धाने कहाहमारा दरबारी ऐसा नहीं है, वह अपनी औरत को सिरपर कभी नहीं चढ़ायगा। यह सुनकर मुझे संतोप हुआ, और मैंने मन ही मन संकल्प किया कि मैं अपनी स्त्रीको इस तरह दबाकर रखंगा कि सब मेरी तारीफ करें । इस प्रकार मुझ में मुर्ख स्त्रियों द्वारा पुरुषत्व का मद जागृत किया गया । इसका दुष्फल यह हुआ कि जब मेरी पत्नी मेरे घर आई तब मैं तीन दिन तक बोला तक नहीं, वह तो बेचारी माँ बापको छोड़कर मेरे घर आई थी मेरा कर्तव्य उसका स्वागत करना था । परन्तु तीन रात तक वह जमीन पर सोती रही, परन्तु मेरे अहंकाररूपी पशुने मुझ में इतनी निर्दयता भरदी कि मेरे मुँह से एक शब्द भी न निकला । बात सिर्फ इतनी थी कि मैं चाहता था कि वह पहिले बोले । वह वेचारी, छोटी उमर
SR No.010832
Book TitleAatmkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy