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________________ २४० ] आत्मकथा. और खुद ही जलचिकित्सा शुरू की । कुछ दिनों में ही बुखार बढ़ना और वजन घटना शरू होगया (जलचिकित्सा के असर का यह प्रारिम्भक चिन्ह है) बारह पौंड वजन पहिले ही घट गया था आठ पौंड़ और घटा कुल नव्वे पौंड वजन रह गया । इतने में एकदिन सूर्यस्नान कराते समय घात्र में से पानी की धारा निकलना शुरू हुई | कई मिनिट तक पानी काफी वेग से बहता रहा। मुझ आश्चर्य हुआ, जलचिकित्सा की सफलता का यह चिन्ह था । जलचिकित्सा की क्रियाओं में नाममात्र का मैंने फेरफार भी किया था, क्योंकि डाक्टर लुईकने जर्मन हैं इसलिये उनने सारी विधि वहां की आवहवा के अनुसार बनाई है मुझे यहां की आवहवा के अनुसार बनाना चाहिये थी । इससे मैं कुछ हानियों से बचगया और काफ़ी सफल हुआ। - जलचिकित्सा एक माह ही अच्छी तरह कर पाया अगर उसी ढंग से छ: माह कर पाता तो इसमें सन्देह नहीं कि शान्ता की जीवनयात्रा काफी लम्बी हुई होती । पर ज्यों ही तवियत जरा अच्छी हुई कि शान्ता को प्रमाद आगया खानपान का संयम वह न रख सकी मैं भी कुछ ढीला होगया। कामका बोझ सिर पर था ही, इसलिये भी ध्यान कुछ ज्यादा बट गया । फिर भी उससे काफी लाम हुआ । वजन ९० पौंड से ११२ पर पहुंच गया । अपरेशन में हड्डी का जो भाग कट गया था वह न कटा होता तो हाथ की तकलीफ तो बिलकुल न रहती। पर अब उन सर्वज्ञम्मन्य डाक्टरों से । क्या कहा जाय ? खैर, उस टूटी फूटी जलचिकित्सा से भी इतना लाभ हुआ कि . शान्ता एक वर्ष के स्थान में पांच वर्ष और जिन्दी रही।
SR No.010832
Book TitleAatmkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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