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________________ विविध आन्दोलन [ २०१ गुंजाइश थी पर शास्त्रों की दृष्टि से तो विजातीय विवाह के विरोध ' का पक्ष बिलकुल कमजोर था । स्थितिपालक पंडितों से प्रारम्भ में जो यह भूल होगई सो फिर नहीं सुधरी । और इस क्षेत्र में उन्हें जो मुँहकी खाना पड़ी उसने इनकी प्रामाणिकता को ऐसा 1 धक्का लगाया कि आगे की बातों की घोषणाओं का भी इनके मुँह से कुछ मूल्य न रहा । स्थितिपालकों की इस परिस्थिति से मुझे काफी बल मिला। मेरे पक्ष की प्रबलता मेरी योग्यता की प्रबलता भी मानी जाने लगी। मुझे इससे काफी आत्मविश्वास भी मिला । आप इसे घमंड भी कह सकते हैं क्योंकि इससे मुझे विरोधी विद्वानों के न तो पांडित्य पर श्रद्धा रही न उनकी प्रामाणिकता पर । 1 मुनिवेषियों से भिड़न्त : जब स्थितिपालक दल टिक न सका तब विरोधी विद्वानों ने जैन मुनियों का सहारा लिया । दिगम्बर जैन समाज में मुनियों के 'विषय' में अटूट श्रद्धा थी क्योंकि उस समय दि. जैन मुनि कोई थे ही नहीं और शास्त्रों में मुनियों का जो वर्णन मिलता है वह अत्यन्त श्रद्धोत्पादक है । कुछ समय पहिले एक मुनि अनन्तकीर्त्ति हुए थे जो कि भक्तों की गलती से आग में जल मरे थे तब से जनता की मुनिभक्ति इस जमाने के इस भक्ति का उपयोग कुछ बन गये । इनमें प्रायः सभी मुनियों के लोगों ने लिये भी स्थिर हो गई । कर लेना चाहा और वे मुनि अपढ़ थे इसलिये उनको अपना महत्त्व बनाये रखने के लिये कुछ पंडितों की जरूरत थी । इधर पंडित
SR No.010832
Book TitleAatmkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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